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वाराणसी

श्रीमद्भागवत कथा में उमड़ा कृष्ण भक्तों का हुजूम

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वाराणसी। शनिवार को श्री बीसु जी मंदिर में चल रही साप्ताहिक श्रीमद्भागवत कथा के पांचवें दिन व्यास संजय कृष्ण भइया ने प्रभु श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं, गोवर्धन लीला और दान लीला का विस्तृत वर्णन किया। कथा की शुरुआत “श्री कृष्णः शरणं नमः” मंत्रोच्चारण के साथ हुई।

उन्होंने कहा कि काशी भगवान भोलेनाथ की नगरी है और वैष्णव परंपरा की महत्ता को दर्शाती है। बाबा विश्वनाथ से बड़ा कोई वैष्णव नहीं है।राक्षसी पूतना की कथा का उल्लेख करते हुए उन्होंने बताया कि जब नंद बाबा के घर आनंद का उत्सव हो रहा था, तो मां लक्ष्मी स्वयं नंद बाबा के घर की संदूक में बैठ गईं और कहा कि इस उत्सव में दिल खोलकर दान करें।

यह उत्सव छह दिन तक चला। छठे दिन पूतना सजधज कर कृष्ण को मारने के इरादे से आई‌ लेकिन बालकृष्ण ने अपनी दिव्यता से उसका उद्धार कर दिया।व्यास जी ने गोकुल का अर्थ समझाते हुए कहा कि ‘गो’ का अर्थ इंद्रियां और ‘कुल’ का अर्थ समूह होता है। गोकुल हमारे शरीर का प्रतीक है।

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नंद का अर्थ है आनंद देने वाला और यशोदा का अर्थ है सम्मान देने वाली। उन्होंने बताया कि श्रीकृष्ण का जन्म मथुरा में हुआ, लेकिन उनका पालन-पोषण गोकुल में आनंद और सम्मान के वातावरण में हुआ।

उन्होंने पूतना को संशय, कंस को भय और सकटा को जड़ता का प्रतीक बताया। इन तीनों दोषों के नाश से व्यक्ति अपने जीवन को सार्थक बना सकता है। उन्होंने कहा कि आनंद की खोज पहले और लक्ष्मी की बाद में करनी चाहिए।कथा के दौरान संकीर्तन और संगीत ने भक्तों को मंत्रमुग्ध कर दिया।

“हमारो धन राधा, श्री राधा” जैसे भजनों पर महिलाएं भक्ति रस में झूम उठीं। कथा के समापन पर शहर के विधायक नीलकंठ तिवारी समेत बड़ी संख्या में श्रद्धालु मौजूद रहे।

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