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धर्म-कर्म

परिवर्तिनी पद्मा एकादशी इस दिन भगवान विष्णु लेते हैं करवट

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रिपोर्ट – प्रदीप कुमार

हिंदू पञ्चाङ्ग के अनुसार प्रत्येक वर्ष भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को पद्मा एकादशी के नाम से जाना जाता है।
वस्तुत: इस वर्ष सोमवार 25 सितम्बर को मनाया जायेगा।
उक्त बातें आयुष्मान ज्योतिष परामर्श सेवा केन्द्र के संस्थापक साहित्याचार्य ज्योतिर्विद आचार्य चन्दन तिवारी ने बताया कि पद्म पुराण में वर्णित कथाओं के अनुसार
युधिष्ठिर ने श्रीकृष्ण से पूछा, हे वासुदेव! भाद्रपद शुक्ल पक्ष में आनेवाली एकादशी का क्या नाम है? इसकी व्रत और पूजा विधि एवं इसका महात्म्य विस्तार से बताएं। तब भगवान श्नीकृष्ण ने युधिष्ठिर की विनती स्वीकार की और बोले, हे युधिष्ठिर भाद्रपद के शुक्ल पक्ष में आनेवाली एकादशी को पद्मा एकादशी और परिवर्तिनी एकादशी कहते हैं। इस एकादशी पर व्रत और पूजन करने से पापों का नाश होता है, मोक्ष की प्राप्ति होती है और इच्छापूर्ति होती है। इस दिन भक्तों को मेरे वामन रूप की पूजा करनी चाहिए। इसके बाद भगवान युधिष्ठिर को पूजा विधि, व्रत का महत्व और व्रत कथा सुनाते हैं।

परिवर्तनी एकादशी व्रत कथा……!!

त्रेतायुग में बलि नामक एक दैत्य था। वह भगवान विष्णु का परम भक्त था। विविध प्रकार के वेद सूक्तों और याचनाओं से प्रतिदिन भगवान का पूजन किया करता था। नित्य विधि पूर्वक यज्ञ आयोजन करता और ब्राह्मणों को भोजन कराता था। वह जितना धार्मिक था उतना ही शूरवीर भी। एकबार उसने इंद्रलोक पर अधिकार स्थापित कर लिया,
इस कारण सभी देवता एकत्र होकर सोच-विचारकर भगवान विष्णु के पास गए। देवगुरु बृहस्पति सहित इंद्रा देवता प्रभु के निकट जाकर हाथ जोड़कर वेद मंत्रों द्वारा भगवान की स्तुति करने लगे। तब भगवान विष्णु ने उनकी विनय सुनी और संकट टालने का वचन दिया। अपने वचन को पूरा करने के लिए उन्होंने वामन रूप धारण करके अपना पांचवां अवतार लिया और राजा बलि से सब कुछ दान स्वरूप ले लिया।

भगवान वामन का रूप धारण करके राजा बलि द्वारा आयोजित किए गए यज्ञ में पहुंचे और दान में तीन पग भूमि मांगी। इस पर राजा ने वामन का उपहास करते हुए कहा कि इतने छोटे से हो, तीन पग भूमि में क्या पाओगे। लेकिन वामन अपनी बात से अडिग रहे। इस पर राजा ने तीन पग भूमि देना स्वीकार किया और दो पग में धरती और आकाश माप लिए। इस पर वामन ने तीसरे पग के लिए पूछा कि राजन अब तीसरा पग कहां रखू, इस पर राजा बलि ने अपना सिर आगे कर दिया। क्योंकि वह पहचान गए थे कि वामन कोई और नहीं स्वयं भगवान विष्णु हैं।

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व्रत का महत्व……….!!

इस दिन राजा बलि ने भगवान से अपने साथ रहने का वर मांगा तो प्रभु बलि के साथ पाताल लोक में रहने चले गए। धार्मिक मान्यताएं हैं कि इस दिन भगवान विष्णु करवट लेते हैं, इसलिए इस एकादशी को परिवर्तिनी एकादशी भी कहते हैं। जो लोग विधिपूर्वक इस एकादशी का व्रत करते हैं, उन्हें सभी पापों से मुक्ति मिल जाती है और सुखमय जीवन व्यतीत करते हैं। इस दिन भगवान को कमल अर्पित करने से भक्त उनके और अधिक निकट आ जाता है। इस दिन व्रत और पूजन करने से ब्रह्मा, विष्णु सहित तीनों लोकों का पूजन करने का पुण्य प्राप्त होता है। अत: इस एकादशी का व्रत अवश्य करना चाहिए।

दान का महत्व……….!!

एकादशी पर दान का विशेष महत्व है। धार्मिक आस्थाओं के आधार पर इस एकादशी के दिन चावल, दही, तांबा और चांदी की वस्तु का दान करना अतिशुभ फलदायी होता है।

पूजा विधि………!!

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इस दिन सुबह सूर्योदय से पहले उठें और स्नान के बाद भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी का पूजन करें। भगवान को स्नान कराएं, फूल-पत्तों और खासकर कमल के फूल से उनका मंदिर सजाएं। रोली का तिलक लगाकर तिल अर्पित करें और मीठे का भोग लगाएं। विष्णु और लक्ष्मीजी की आरती करें। इस दिन रात्रि में भजन-कीर्तन करने का विशेष महत्व है।

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