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वाराणसी

काशी में पावरलूम की जियो टैगिंग शुरू, हथकरघा को मिलेगी संजीवनी

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वाराणसी में बनारसी साड़ियों की पहचान और पावरलूम के विकास को बढ़ावा देने के लिए वस्त्र एवं हथकरघा विभाग ने पावरलूम की जियो टैगिंग शुरू की है। यह पहल न केवल हथकरघा उद्योग को नई ऊर्जा देगी बल्कि पावरलूम की वास्तविक संख्या का भी पता लगाएगी जिससे उनके संवर्धन पर काम किया जा सकेगा।

सहायक आयुक्त वस्त्र एवं हथकरघा अरुण कुमार कुरील ने बताया कि उत्तर प्रदेश में पावरलूम की गणना आखिरी बार 1985 में हुई थी जिसकी प्रामाणिकता अब नहीं है।

वाराणसी परिक्षेत्र, जिसमें चंदौली, जौनपुर, मिर्जापुर और भदोही शामिल हैं। जियो टैगिंग का काम शुरू हो चुका है। अब तक वाराणसी में 28,970 पावरलूम की जियो टैगिंग हो चुकी है जबकि अनुमान है कि यहां एक लाख से अधिक पावरलूम हैं।

अन्य जिलों में यह संख्या अभी बेहद कम है।2004 में साड़ी उद्योग में आई मंदी के बाद हथकरघा कमजोर हुआ और पावरलूम ने उसका स्थान ले लिया। पावरलूम पर डुप्लीकेट बनारसी साड़ियां बनने लगीं लेकिन वे हैंडलूम की खासियत वाली साड़ियां नहीं बना सकते जिनकी विदेशों में भी मांग है।

आमतौर पर लोग हैंडलूम और पावरलूम की साड़ियों में अंतर नहीं कर पाते। जियो टैगिंग से यह स्पष्ट होगा कि कौन-सा उत्पाद कहां और कैसे बनाया जा रहा है जिससे हैंडलूम और पावरलूम दोनों को बढ़ावा मिलेगा।

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वाराणसी के जैतपुरा, बजरडीहा और लोहता इलाकों में पावरलूम की संख्या सबसे ज्यादा है। जियो टैगिंग पूरी होने के बाद इन इलाकों के कारीगरों को बाजार और रोजगार से जोड़ने का काम किया जाएगा। उनका हुनर पहचानकर उन्हें बेहतर अवसर दिए जाएंगे।

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