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वाराणसी

आकिंचन धर्म हमें मोह-माया का त्याग करना सिखाता है- राजेश जैन

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रिपोर्ट – प्रदीप कुमार
दशलक्षण महापर्व का नौंवा दिन- अंनत चतुर्दशी गुरुवार को-
विराणसी। श्री दिगम्बर जैन समाज काशी के तत्वावधान में बुधवार को प्रातः जैन मन्दिरो में चौबीसों तीर्थंकरो की पूजा प्रक्षाल किया गया। पर्व के नौंवे दिन रत्नत्रय स्थापना, नंदीशवर दीप पूजा, दशलक्षण पूजा, सोलह कारण व्रत पूजा, स्वयंभू स्त्रोत पूजा के साथ अनन्त चतुर्दशी पूजन भी प्रारंभ हुई। भगवान पार्श्वनाथ की जन्म कल्याणक भूमी भेलूपुर सायंकाल नौवें अध्याय “उत्तम आकिंचन धर्म पर प्रवचन करते हुए प्रो: फूल चन्द्र प्रेमी जी ने कंहा-उत्तम आकिंचन हमें मोह-माया का त्याग करना सिखलाता है-इससे आत्मा को शुद्ध बनाया जा सकता है। पर पदार्थो को अपना न मानना और उनसे विमुख होकर, परिग्रह का त्याग करके निज में स्थित होना ही आकिंचन धर्म है।
खोजंवा स्थित जैन मंदिर में डॉ मुन्नी पुष्पा जैन ने कंहा भव सूख से विरक्त आत्म वैभव में रमण करना आकिंचन धर्म है।
प्रो: अशोक जैन ने कंहा- पाप का उदय कब और कहा आ जाए, गति का बदं कब हो जाए, आयु का अंत कब किस समय हो जाए, हमें मालूम नहीं इसलिए हमें अपने भाव मन और कर्म को हमेशा शुद्ध रखना चाहिए। ग्वाल दास लेन स्थित मन्दिर में पं सुरेंद्र जैन ने कहां- सिद्धांततः तो हमारा कुछ नही है, नश्वर वस्तु तो हमारी हो ही नहीं सकती। शास्वत वस्तु हमारे पास से जा नहीं सकती।
मेरी ज्ञान रूपी चैतन्य आत्मा के अलावा पर वस्तु ये धन दौलत, शरीर, जर-जमीन कुछ भी तो मेरा नही है। परिग्रह होने पर मोक्ष की उडान नही भरी जा सकती। कोई अपनी आत्मा में कैसे लीन हो सकता है। इस लिए ब्रह्मचर्य से पूर्व आकिंचन का होना अति आवश्यक है।
सायंकाल भजन, जिनवाणी पूजन, तीर्थंकरो की आरती के साथ कई धार्मिक आयोजन किये गए।
अध्यक्ष दीपक जैन, उपाध्यक्ष राजेश जैन, विनोद जैन,संजय जैन, आर सी जैन, प्रधान मंत्री अरूण जैन, समाज मंत्री तरूण जैन उपस्थित थे।

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