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सियासत

गणतंत्र दिवस के बाद गांव की ओर दौड़ेगी सपा की साइकिल

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वाराणसी में भी तैयारी

वाराणसी। समाजवादी पार्टी भी अब अपनी साइकिल को गांवों को तरफ मोड़ने की तैयारी में जुट गई है। PDA (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) चर्चा के साथ ही आगामी चुनावों के लिए अभी से बूथ को मजबूत बनाने की रणनीति पर काम शुरू हो गया है। निष्क्रिय लोग बाहर किए जाएंगे, पार्टी का झंडा लेकर चल रहे सक्रिय कार्यकर्ताओं को तरजीह दी जाएगी।

गणतंत्र दिवस के बाद 27 से निकलेगी साइकिल

सपा मुखिया अखिलेश यादव के नेतृत्व में उत्तर प्रदेश के सभी जिलों में PDA चर्चा का आयोजन किया जा रहा है। 27 जनवरी से शुरू होगा। पहले सपा का यह आयोजन 26 दिसंबर से होना था, लेकिन पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की मृत्यु के कारण इसे टाल दिया गया था।

27 जनवरी से सपा प्रदेश के हर विधानसभा क्षेत्र में सेक्टरवार ‘पीडीए चर्चा’ का आयोजन करेगी। कार्यक्रम का उद्देश्य आंबेडकर के विचारों को जन-जन तक पहुंचाना और संविधान को बचाना है। सपा को उम्मीद है कि उसके इस आयोजन से दलित, पिछड़ा वोट बैंक उनके पास आएगा।

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वाराणसी में भी तैयारी

PDA चर्चा आयोजन के लिए सपा की वाराणसी इकाई भी पीएम के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में दमखम के साथ तैयारी में जुट गई है। सपा जिलाध्यक्ष सुजीत यादव लक्कड़ ने बताया कि विधानसभावार पीडीए चर्चा के लिए चौपाल का आयोजन होगा। गांव के चट्टी चौराहे से लेकर हर बूथ वार चौपाल का आयोजन होगा। आयोजन संविधान को बचाने और बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर के विचारों को जन-जन तक पहुंचाने के लिए किया जा रहा है। इसके लिए जिला और महानगर के पदाधिकारियों की बैठक कर पीडीए चर्चा के लिए रूपरेखा तैयार की जा रही है।

सेक्टर, बूथ भी करेंगे मजबूत

पीडीए चर्चा के साथ ही सपा अपने बूथों को मजबूत करने की तैयारी में जुट गई है। पीडीए चर्चा के दौरान मजबूत और कमजोर बूथों की सूची तैयार होगी। सेक्टर से लेकर बूथ लेवल के जो कार्यकर्ता, पदाधिकारी निष्क्रिय पाए जाएंगे, उन्हें हटाकर सक्रिय लोगों की नियुक्ति की जाएगी।

महानगर के वार्ड, बूथ कमेटी से बाहर होंगे निष्क्रिय कार्यकर्ता

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मतदाता सूची के अंतिम प्रकाशन के बाद सपा ने जिले के साथ ही महानगर की भी समीक्षा शुरू कर दी है। महानगर अध्यक्ष दिलीप डे ने कहा है कि वार्ड अध्यक्ष से लेकर बूथ प्रभारी की स्क्रीनिंग की जा रही है। निष्क्रिय लोगों के स्थान पर अब अपने अपने क्षेत्र में सक्रिय कार्यकर्ताओं को जिम्मेदारी सौंपी जाएगी। विधानसभावार हर बूथ की समीक्षा होगी। हर बूथ एजेंट को अपने बूथ की मतदाता सूची के साथ उन्हें बूथ वार मतदाताओं को जोड़ने की जिम्मेदारी दी जाएगी।

गांवों में ही सत्ता की चाभी

वर्ष 2014 में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में जब बहुमत से सरकार आई, उसमें सबसे बड़ी भूमिका ग्रामीण इलाकों की थी। शहर की अपेक्षा ग्रामीण मतदाताओं ने अपनी ताकत दिखाई। भाजपा का 2014 के चुनाव में पूरा फोकस ग्रामीण क्षेत्र के मतदाताओं पर था। गांवों में रात्रि विश्राम, चाय पर चर्चा, दलितों, पिछड़ों के यहां भाजपा नेताओं का भोजन करना, इन आयोजनों ने ग्रामीण इलाकों में भाजपा की पैठ बनाई और दलित वोट बैंक बसपा से भाजपा की झोली में आ गया।

2024 के चुनाव में कांग्रेस और सहयोगी दलों ने ‘ संविधान खतरे में है’ का नारा लेकर जनता के बीच आई। प्रचार किया गया भाजपा 400 सीट पा जाएगी तो संविधान बदल देगी। इसका असर चुनाव के नतीजों पर पड़ा और भाजपा उम्मीद से कम सीट पाई

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