चन्दौली
‘कारखास’ की नई नियुक्ति से हिला चंदौली !

‘कारखास’ को मिली है खास, विशेष व्यक्ति, मुख्य व्यक्ति, महत्वपूर्ण व्यक्ति और ‘करिन्दा’ की उपाधि
चंदौली (जयदेश)। पुलिस अधीक्षक आदित्य लांग्हे ने जब जनपद चंदौली की बागडोर संभाली तो ऐसा लगा कि अब पुलिस विभाग में अब बहुत कुछ सुधर जाएगा। कुछ दिन तक विभाग में उनकी ‘खौफ’ या ‘हनक’ कायम भी रही। लेकिन समयान्तराल के बाद ही ‘‘ढाक के तीन पात’’ वाली कहावत चरितार्थ हो गई।
एक समय था कि जनपद में थानाध्यक्ष या थाना प्रभारी ‘कारखास’ बनाने से घबराते थे। वहीं अब थानाध्यक्ष या थाना प्रभारी कारखासों की नियुक्ति कर अपनी जेब गरम करने में मशगूल हैं। उल्लेखनीय है कि पुलिस विभाग का बहु प्रचलित शब्द ‘कारखास’ है। ‘कारखास’ को खास व्यक्ति, विशेष व्यक्ति, मुख्य व्यक्ति, महत्वपूर्ण व्यक्ति अर्थात ‘करिंदे’ की उपाधि से भी जाना जाता है।
सिपाही या आरक्षी थाना प्रभारी का विश्वासपात्र या करीबी होता है। उसे थाने में ‘विशेष’ या ‘विशिष्ट’ की श्रेणी में रखा जाता है। क्योंकि उसका कार्य थाने के अंदर व बाहर दोनों तरफ अपना नियंत्रण रखना होता है। वह किसी प्रकार के विवाद पर तत्काल ‘मैनेज’ करने का काम भी करता है।
विभागीय सूत्र बताते हैं कि ‘कारखास’ का जनप्रतिनिधियों से लेकर अपराधियों तक ‘विशेष जुड़ाव’ होता है। अर्थात बाहर या भीतर दोनों प्रकार के सुविधा शुल्क संबंधी नियंत्रण भी उसके हाथ में रहते हैं। यहां तक की थानाध्यक्ष के व्यक्तिगत कार्यों का लेखा-जोखा भी रखता है। वह व्यक्ति अक्सर बिना वर्दी के रहता है। यदि विभागीय अधिकारी आते हैं तो उसे वर्दी में देखकर स्थानीय लोग ‘कानाफूसी’ भी करते हैं। ’सुविधा शुल्क’ या ‘काले कारनामे’ में भी उसे महारथ हासिल होती है। थाने में यदि ‘कारखास’ नहीं रहता है तो काम नहीं चल पाता है।
दिलचस्प पहलू यह है कि अन्य सिपाही या आरक्षी उसका विरोध भी नहीं कर पाते हैं। क्योंकि थानाध्यक्ष से उसका विशेष लगाव होता है। जुआ, सट्टा, नशा विक्रेता, खनन माफिया व अन्य अवैध कारोबारी से उसकी गहरी साठ-गांठ होती है। यहां तक की साहब के उठने बैठने तक की पूरी निगरानी ‘कारखास’ में सन्निहित है। यही कारण है कि ‘कारखास’ की नई नियुक्ति को लेकर जनपद चंदौली इन दिनों सुर्खियों में है। यह कहना अतिश्योक्ति नही है कि ‘कारखास’ की नई नियुक्ति से जनपद चंदौली हिल गया है।