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वाराणसी

आख़िर पार्षदों को ग़ुस्सा क्यों आ रहा है ? कभी अधिकारी से भिड़ रहे तो कभी जनता से

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रिपोर्ट – राजेश राय

वाराणसी। सन् अस्सी में एक पिक्चर आयी थी अल्बर्ट पिंटो को ग़ुस्सा क्यों आता है। जिसमें दिखाया गया था कि फ़िल्म का नायक नसीरुद्दीन शाह मिलों में आए दिन होने वाली हड़ताल के लिए पहले मज़दूरों को ही दोषी समझता है। लेकिन जब उसका मज़दूर बाप ख़ुद शोषण का शिकार होता है तब उसे एहसास होता है कि दरअसल दोषी मज़दूर नहीं बल्कि मिल मालिक हैं।

बनारस में पिछले कुछ दिनों के घटनाक्रम पर नज़र डालें तो पायेंग अचानक बीजेपी के नगर निगम पार्षदों का ग़ुस्सा फूट पड़ा है। कभी वे अधिकारी से भिड़ रहे हैं, तो कभी जनता से। मंगलवार ( 25 जून) को जहां तीन दर्जन से ज़्यादा पार्षदों ने नगर आयुक्त का घेराव किया, वहीं बुधवार को पक्के महाल की एक महिला बीजेपी पार्षद इतने ग़ुस्से में आ गईं की क्षेत्रीय नागरिक से मारपीट करने लगीं। जिसका वीडियो सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रहा है।

सवाल है कि अचानक शहर में ऐसा क्या हुआ जो बीजेपी पार्षदों का ग़ुस्सा फूट पड़ा है। जवाब सिर्फ़ एक है लोकसभा चुनाव परिणाम। अगर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जीत का अंतर घट कर ख़तरनाक स्तर तक नहीं पहुँचा होता तो शायद इतनी हलचल नहीं मचती। बीजेपी पार्षदों ने नगर आयुक्त से कहा भी कि अधिकारियों की कार्यशैली की वजह से विपरीत परिणाम आये।

वैसे तो चुनाव में पूरे उत्तर प्रदेश में बीजेपी का प्रदर्शन अत्यंत ख़राब रहा है। लेकिन वाराणसी और अयोध्या पर बीजेपी आलाकमान का फ़ोकस सबसे ज़्यादा है। नीचे से ऊपर तक हड़कंप मचा हुआ है। जवाबदेही तय की जा रही है। इसी जवाबदेही का असर नगर निगम में दिख रहा है। बीजेपी पार्षदों का यह मानना है कि जनता की समस्याओं का अगर समय रहते समाधान होता तो यह नौबत नहीं आती।

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एक पूर्व वरिष्ठ पार्षद ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि, पार्षदों को आगामी चुनाव में हार का भय सता रहा है। पार्षदों का मानना है कि बीजेपी की ज़मीन बनारस में खिसक रही है। विधानसभा चुनाव में शहर दक्षिणी का चुनाव परिणाम और अब लोकसभा का परिणाम। इन दोनों परिणामों से यह साफ़ हो गया है कि जनता जनप्रतिनिधियों से सख़्त नाराज है। लोकसभा का परिणाम एक चेतावनी है। अब भी नहीं चेते तो कभी संभल नहीं पायेंगे।

दूसरे शब्दों में बीजेपी अब जीत की गारंटी नहीं रही।चुनाव में जीतना है तो काम तो करना होगा।देखा जाये तो पार्षदों का सीधा जुड़ाव जनता से होता है।मोहल्ले की रोज़मर्रा की समस्याओं के लिए जनता पार्षद को ही पकड़ती है। बदले में पार्षद, अधिकारियों का दरवाज़ा खटखटाते हैं। जब वहाँ पार्षदों की सुनवाई नहीं होती है तब असली समस्या शुरू होती है।

सदन की बैठक में पार्षदों को बोलने से रोका जाता है –

नगर की सबसे बड़ी संसद नगर निगम सदन है। सदन की बैठक में पार्षद जन समस्या उठाते हैं और अधिकारियों से समाधान की उम्मीद करते है। आरोप है कि जब पार्षद समस्या उठाने का प्रयास करते हैं तो मेयर बीच में टोक देते हैं। ऐसे में अधिकारियों की जवाबदेही तय नहीं हो पाती और समस्या बढ़ती जाती है। उन्हें क्षेत्र में जनता को जवाब देना मुश्किल हो जाता है। मंगलवार के हंगामे का एक उल्लेखनीय पहलू यह रहा कि बीजेपी पार्षद मेयर को बाईपास कर सीधे नगर आयुक्त से भिड़ गये।

आमतौर पर पार्षद मेयर को अपनी समस्या बताते हैं बदले में मेयर नगर आयुक्त को तलब करते हैं। मौजूदा  घटनाक्रम को पार्टी की अंदरूनी खींचातान से जोड़ कर देखा जा रहा है। चूँकि मामला सत्तारूढ़ दल से जुड़ा हुआ है, इसलिए डैमेज कंट्रोल की क़वायद भी शुरू हो गई है। डीएम की बीजेपी के चुनिंदा पार्षदों से मीटिंग को इसी से जोड़ कर देखा जा रहा है।

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कुल मिला कर कहा जा सकता है कि चुनाव परिणामों ने सत्तारूढ़ दल को अंदर से हिल दिया है। आगामी विधानसभा चुनावों से पहले पार्टी को अपने कील कांटे दुरुस्त करने होंगे। सरकार को जन समस्याओं को प्राथमिकता से दूर करना होगा, नहीं तो स्थिति और भी विकट हो जाएगी।

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