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वाराणसी

बनारस में बिजली निजीकरण के विरोध में प्रदर्शन

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वाराणसी। बिजली के निजीकरण के विरोध में बनारस के बिजली कर्मचारियों ने प्रदेश भर की तरह विरोध दिवस मनाया और मुख्यमंत्री से प्रभावी हस्तक्षेप की मांग की। इस दौरान उन्होंने निजीकरण के फैसले को जनहित में निरस्त करने की अपील की। 13 जनवरी को सभी बिजली कर्मचारी काली पट्टी बांधकर पूरे दिन विरोध सभा करेंगे। इसके अलावा, अवकाश के दिनों में वे रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशन के माध्यम से आम उपभोक्ताओं में जनजागरण अभियान चलाएंगे।

विरोध सभा में कर्मचारियों ने स्पष्ट किया कि यह आंदोलन तब तक जारी रहेगा जब तक बिजली के निजीकरण का फैसला वापस नहीं लिया जाता। उनका कहना था कि यदि पूर्वांचल और दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगमों को निजी हाथों में सौंपा गया तो उत्तर प्रदेश की बिजली व्यवस्था का निजीकरण करना आसान हो जाएगा।

इस दौरान, कर्मचारियों ने यह भी कहा कि बिजली के निजीकरण से सबसे ज्यादा नुकसान गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले उपभोक्ताओं और किसानों को होगा।

संगठन ने यह भी योजना बनाई है कि वे निजीकरण के खिलाफ जानकारी फैलाने के लिए गांवों और शहरों में जनजागरण अभियान चलाएंगे। मुम्बई का उदाहरण देते हुए उन्होंने बताया कि वहां निजीकरण के कारण घरेलू उपभोक्ताओं को बिजली की कीमत 17-18 रुपये प्रति यूनिट चुकानी पड़ती है।

इसके अलावा, निजीकरण से कर्मचारियों को भी नुकसान उठाना पड़ेगा, क्योंकि इससे लगभग 50,000 संविदा कर्मी और 26,000 नियमित कर्मचारियों की छंटनी हो सकती है। इसके साथ ही अभियंताओं और जूनियर इंजीनियरों की भी पदावनति और छंटनी की आशंका है।

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इस विरोध सभा में कई प्रमुख नेताओं ने संबोधित किया और निजीकरण के खिलाफ अपने विचार व्यक्त किए।

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