बलिया
डॉ. रामसेवक ‘विकल’: भोजपुरी-हिंदी साहित्य के विलक्षण साधक

बलिया। विशेषांकबलिया जनपद के इसारी सलेमपुर गांव में 1 जुलाई 1939 को जन्मे डॉ. रामसेवक ‘विकल’ का जीवन साहित्य, शिक्षा और संस्कृति को समर्पित रहा। पारिवारिक संघर्षों के बीच भी उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में निरंतर प्रगति की और जमशेदपुर आकर गिरि भारती विद्यालय में अध्यापन से जुड़ गए।रांची विश्वविद्यालय से एमए और पीएचडी की उपाधि प्राप्त कर उन्होंने हिंदी, भोजपुरी, बंगला और संस्कृत में गहरा अध्ययन किया।
“कर्मवीर”, “जादूगर”, “कमलाकांत” जैसे नाटकों और “भोजपुरी गीता” जैसी कालजयी कृति के रचयिता विकल जी की लेखनी में राष्ट्रप्रेम, सामाजिक चेतना और मानवीय संवेदना की झलक मिलती है।
भोजपुरी साहित्य परिषद, जमशेदपुर के सक्रिय सदस्य रहे विकल जी को “मथुरानाथ पुरस्कार” समेत कई सम्मान प्राप्त हुए। 11 नवम्बर 2002 को उनका देहावसान हुआ, किंतु उनकी स्मृति में आज भी “डॉ. रामसेवक विकल साहित्य सेवा ट्रस्ट” व “साहित्य कला संगम संस्थान” उनके कार्यों को जीवित रखे हुए हैं।उनकी रचनाएं आज भी विभिन्न राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो रही हैं और ‘विकल सम्मान’ के रूप में नई पीढ़ी को प्रेरणा देती हैं।