मिर्ज़ापुर
महाकुंभ और तीर्थस्थलों पर वीआईपी दर्शन के लिए विशेष प्रोटोकॉल की मांग

सम्राट हर्षवर्धन आठवीं सदी में सामान्य श्रद्धालु बनकर कुंभ मेले में आये थे
मिर्जापुर। गांव-गरीब नेटवर्क ने महाकुंभ और प्रमुख तीर्थस्थलों जैसे विंध्याचल, प्रयागराज के तीर्थराज और काशी विश्वनाथ धाम में वीआईपी दर्शन हेतु विशेष प्रोटोकॉल बनाने की मांग उठाई है। नेटवर्क का सुझाव है कि वीआईपी श्रद्धालुओं के लिए सप्ताह में केवल एक दिन को “विशेष अतिथि दिवस” घोषित किया जाए। इसका उद्देश्य आम श्रद्धालुओं को असुविधा और भीड़भाड़ से बचाना है।
नेटवर्क ने इस मामले को राष्ट्रपति और सुप्रीम कोर्ट से स्वयं संज्ञान में लेने की अपील की है। संयोजक सलिल पाण्डेय ने बताया कि वीआईपी आगमन के कारण व्यवस्था अक्सर चरमरा जाती है, जिससे आम श्रद्धालु धक्कामुक्की और असुविधा का सामना करते हैं।
इतिहास से प्रेरणा की आवश्यकता
सलिल पाण्डेय ने 8वीं सदी के सम्राट हर्षवर्धन का उदाहरण देते हुए बताया कि उन्होंने कुंभ मेले में एक साधारण श्रद्धालु के रूप में भाग लिया था। वे अपनी संपत्ति सनातन धर्म और संस्कृति के उन्नयन के लिए दान कर, बिना किसी विशेष प्रोटोकॉल के लौट गए थे। यह दर्शाता है कि धार्मिक स्थलों पर वीआईपी संस्कृति धर्म के मूल सिद्धांतों के विरुद्ध है।
प्रशासनिक अव्यवस्था और भगदड़ की घटनाएं
उन्होंने प्रयागराज महाकुंभ के दौरान रेलवे स्टेशन पर हुई भगदड़ और विंध्याचल में 26 वर्ष पूर्व नवरात्रि मेले में हुई दुर्घटना का हवाला देते हुए कहा कि ऐसे हादसे वीआईपी दौरों के कारण बढ़ती अव्यवस्थाओं को उजागर करते हैं। उन्होंने सुझाव दिया कि वीआईपी दर्शन के दिन को अलग निर्धारित किया जाए, और अन्य दिनों में वीआईपी सामान्य श्रद्धालु की तरह दर्शन करें।
धार्मिक स्थलों पर बढ़ती अनैतिक घटनाएं
सलिल पाण्डेय ने कहा कि तीर्थस्थलों पर उपदेशों के बावजूद नारी उत्पीड़न, दुष्कर्म, हिंसा, और रिश्वतखोरी जैसी घटनाएं बढ़ रही हैं। उन्होंने इसे “मर्ज बढ़ता गया, ज्यों-ज्यों दवा की” मुहावरे से जोड़ा। उनका कहना है कि निंदनीय कार्य केवल आम अपराधी ही नहीं, बल्कि तथाकथित विशिष्टजन भी कर रहे हैं, जिससे व्यवस्था और सामाजिक आस्थाएं दोनों प्रभावित हो रही हैं।
समाधान का प्रस्ताव
1. सप्ताह में एक दिन “वीआईपी दिवस” घोषित किया जाए।
2. वीआईपी अन्य दिनों में सामान्य श्रद्धालुओं की तरह दर्शन करें।
3. सुरक्षा घेरा सीमित हो ताकि व्यवस्थाएं न प्रभावित हों।