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भगत सिंह की जयंती आज, कैसे बने शहीद-ए-आजम ?

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जन्मदिन पर विशेष –

आज ही के दिन सन् 1907 में पंजाब के लायलपुर जिले के बग्गा गाँव (विभाजन के बाद वर्तमान में पाकिस्तान) में महान क्रांतिकार भगत सिंह का जन्म हुआ था। जिस दिन भगत सिंह का जन्म हुआ, उसी दिन उनके पिता सरदार किशन सिंह और चाचा अजीत सिंह की जेल से रिहाई हुई थी। इस पर उनकी दादी जय कौर के मुँह से निकला ‘ए मुंडा ते बड़ा भागाँवाला ए’ (यह लड़का तो बड़ा सौभाग्‍यशाली है)।

शहीद-ए-आजम के पौत्र (भतीजे बाबरसिंह संधु के पुत्र) यादविंदर सिंह संधु ने बताया कि दादी के मुँह से निकले इन अल्फाज के आधार पर घरवालों ने फैसला किया कि भागाँवाला (भाग्‍यशाली) होने की वजह से लड़के का नाम इन्हीं शब्दों से मिलता-जुलता होना चाहिए, लिहाजा उनका नाम भगत सिंह रख दिया गया।

देश की आजादी के लिए जगाई अलख –

लाहौर सेंट्रल कॉलेज से शिक्षा ग्रहण करते समय भगत सिंह आजादी की लड़ाई में सक्रिय रूप से शामिल हो गए और अंग्रेजों के खिलाफ कई क्रांतिकारी घटनाओं को अंजाम दिया। सेंट्रल असेंबली में बम फेंकने के मामले में उन्हें काला पानी की सजा हुई, इसलिए उन्हें अंडमान-निकोबार की सेल्युलर जेल में भेज दिया गया, लेकिन इसी दौरान पुलिस ने सांडर्स हत्याकांड के सबूत जुटा लिए और इस मामले में उन्हें फाँसी की सजा सुनाई गई।‌ भगत सिंह ने देश की आजादी की अलख जगाई। जिसने बताया कि स्वतंत्रता के लिए अगर प्राणों की आहुति भी देनी पड़े तो भी पीछे नहीं हटा जाना चाहिए।

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क्रांतिकारी गतिविधियों में चंद्रशेखर आजाद से जुड़े –

भगत सिंह क्रांतिकारी गतिविधियों में चंद्रशेखर आजाद की पार्टी के माध्यम से जुड़े। सन् 1917 में जलियांवाला हत्याकांड ने उनकी मनोदशा पर व्यापक छाप छोड़ी, उस दौरान तक वह गांधी जी के विचारों से काफी हद तक प्रेरित थे, मगर इस नरसंहार में गांधी जी की उचित प्रतिक्रिया ना मिलने से भगत सिंह को दुख हुआ और इसके बाद उन्होंने क्रांतिकारी गतिविधियों की ओर रुख लिया। वह रास्ता, जिस पर चलकर आजादी पाई जा सकती थी। अपनी बहादुरी और देश के प्रति दीवानगी से उन्होंने अंग्रेजी हुकूमत को हिला कर रख दिया। भगत सिंह को राजगुरु और सुखदेव के साथ-साथ 23 मार्च, 1931 को फांसी दी गई, लेकिन उनकी शहादत ने आजादी की जो ज्वाला प्रज्वलित की, उसने ब्रिटिश शासन को पूरी तरह से जला कर रख दिया। उनके योगदान को आज भी याद किया जाता है और वे प्रेरणा का स्रोत बने हुए हैं।

भगत सिंह कैसे बने शहीद-ए-आजम

भगत सिंह को फांसी की सज़ा मिलने के बाद कानपुर से निकलने वाले ‘प्रताप’ और इलाहाबाद से छपने वाले ‘भविष्य’ जैसे अखबारों ने उनके नाम से पहले शहीद-ए-आजम लिखना शुरू कर दिया था। यानी कि जनमानस ने उन्हें अपने स्तर पर ही शहीदे-ए-आजम कहना शुरू कर दिया था।

“सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है, देखना है जोर कितना बाजु-ए-कातिल में है” भगत सिंह का यह नारा आजादी के 77 साल बाद भी हमें देशभक्ति और जुनून से भर देते हैं। भारत के इतिहास में अनेक वीर सपूतों का योगदान रहा है, जिनमें भगत सिंह विशेष रूप से याद किए जाते हैं।

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