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पूर्वांचल

पर्यावरण अनुकूल रेल यात्रा स्वच्छता भी, पर्यावरण संरक्षण भी

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रिपोर्ट : मनोकामना सिंह

गोरखपुर। नगरीकरण एवं औद्योगिकीकरण तथा तेज रफ्तार जिन्दगी से आमजन को जीवन में काफी राहत पहँचाया है लेकिन समय के साथ सभी को शुद्ध वातावरण की भी बेहद आवश्यकता रही है और पर्यावरण संरक्षण का महत्व समझ में आ रहा है। पर्यावरण की शुद्धता के लिए भारत सरकार द्वारा अनेक प्रभावी कदम उठाये गये। बेहतर एवं तेज यातायात व्यवस्था के बिना किसी भी राष्ट्र का विकास सम्भव नहीं है। ऐसे में यातायात के जो साधन देश की तरक्की के लिए उपयोग में लाये जा रहे हैं वो पर्यावरण के अनुकूल हों इसका ध्यान भी रखना चाहिए। इस दिशा में एक ऐतिहासिक कदम उठाते हुए रेल मंत्रालय द्वारा भारतीय रेल पर स्थित सभी बड़ी लाइनों को विद्युतीकृत करने का निर्णय लिया गया और अब मिशन मोड में कार्य करते हुए ‘भारतीय रेल‘ दुनिया की सबसे बड़ी हरित रेल बनने की ओर अग्रसर है।
पूर्वोत्तर रेलवे पर वर्ष 2014-15 के पूर्व मात्र 24 रूट किमी. रेल खण्ड ही विद्युतीकृत हो पाया था वहीं वर्तमान में 2797 रूट किमी. रेल खण्ड को विद्युतीकृत कर लिया गया है जोकि पूर्वोत्तर रेलवे पर अवस्थित कुल बड़ी लाइन (रूट किमी.) का लगभग 88 प्रतिशत है, जिसके फलस्वरूप सभी प्रमुख रेल मार्गों पर इलेक्ट्रिक ट्रेनें दौड़ रही हैं, इससे जहां एक ओर डीजल इंजन हटने से कार्बन उत्सर्जन घटा है तथा पर्यावरण प्रदूषण कम हुआ है वहीं दूसरी ओर डीजल पर निर्भरता कम होने से रेल राजस्व की बचत हो रही है। रेलवे बोर्ड द्वारा भारतीय रेल की सभी बड़ी लाइनों को विद्युतीकृत करने का लक्ष्य दिसम्बर 2023 रखा गया है जिसे पूर्वोत्तर रेलवे समय से प्राप्त कर लेगा। इन कार्यों को तेजी से पूर्ण करने के लिए बड़े साइज के इंजीनियरिंग प्रोक्योरमेंट एवं कन्स्ट्रक्शन (इपीसी) काॅन्ट्रैक्ट किए गए, बेहतर मॉनिटरिंग की व्यवस्था बनाई गई तथा इस दौरान फंड की उपलब्धता सुनिश्चित की गई।
पर्यावरण को संरक्षित रखने के लिए हर स्तर पर प्रयास किया जा रहा है जिनमें से एक है ‘हेड ऑन जेनरेशन‘ (एच.ओ.जी.) व्यवस्था जिसके अन्तर्गत कोचों में बिजली की सप्लाई, ओवरहेड इक्विपमेन्ट से इलेक्ट्रिक लोकोमोटिव के माध्यम से की जा रही है जिसके फलस्वरूप डीजल से चलने वाले पावर कार की उपयोगिता समाप्त हो गई है। पूर्वोत्तर रेलवे से कुल 34 ट्रेनों को एच.ओ.जी. युक्त कर चलाया जा रहा है, जिससे ईंधन के बचत के साथ ही कार्बन उत्सर्जन में भी कमी आई है।
‘स्वच्छता‘ पर्यावरण संरक्षण का एक प्रमुख अंग है जिसे ध्यान में रखते हुए ‘स्वच्छ भारत मिशन‘ के अन्तर्गत भारतीय रेल द्वारा लगभग सभी ट्रेनों में बायो-टॉयलेट लगाया गया जिससे अब कोचों से गन्दगी (मल-मूत्र) पटरियों पर नहीं गिरता है। इन प्रयासों से रेल की पटरियों पर प्रतिदिन गिरने वाले 2 लाख 74 हजार लीटर गन्दगी को रोका जा सका, जिससे स्वच्छता में उल्लेखनीय सुधार होने के साथ इस गन्दगी से पटरियों एवं उनकी फिटिंग का क्षरण भी रोका जा सका है जिससे सम्पूर्ण भारतीय रेल पर लगभग ₹ 400 करोड़ की बचत प्रतिवर्ष हो रही है। पूर्वोत्तर रेलवे पर 3296 कोचों में बायो-टॉयलेट लगाया जा चुका है।
पर्यावरण संरक्षण के अन्तर्गत अन्य महत्वपूर्ण विषयों जैसे की ऊर्जा संरक्षण एवं जल संरक्षण के क्षेत्र में भी रेलवे द्वारा विशेष कार्य किया जा रहा है, पूर्वोत्तर रेलवे के कार्यालय भवनों एवं स्टेशनों पर सौर ऊर्जा के पैनल लगाये गये हैं जिससे लगभग 25 लाख यूनिट सौर ऊर्जा का उत्पादन किया गया जिसके फलस्वरूप लगभग ₹ 1 करोड़ की बचत हुई है। इसी प्रकार जल संरक्षण के लिए ऐसे सभी भवन जहां छत का क्षेत्रफल 200 वर्ग मीटर से ज्यादा है वहाँ ‘रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम‘ लगाया जा रहा है, रेलवे के ज्यादातर भवनों में यह व्यवस्था क्रियाशील है।
पूर्वोत्तर रेलवे पर हर वर्ष वृक्षरोपण का कार्यक्रम योजनाबद्ध तरीके से किया जा रहा है, वर्ष 2021-22 में कुल 3.38 लाख पौधे लगाए गए हैं। 5 जून यानि कि पर्यावरण दिवस के अवसर पर पूर्वोत्तर रेलवे पर वृहद वृक्षारोपण कार्यक्रम चलाया जायेगा। रेलवे पर वृक्षारोपण कोई कार्य नहीं अपितु जीवन शैली है, जब भी कोई भी निरीक्षण हो अथवा कोई भी कार्यक्रम हो उसमें वृक्षारोपण एक अभिन्न हिस्सा की तरह सम्मिलित होता है। रेलवे के सरकारी आवासों में रहने वाले रेलकर्मी स्वयं अपने आवासों में पौधरोपण कर उसको पोषित करते हैं। पौधों के बेहतर रख रखाव के लिए नवप्रयोग के तौर पर पौधे के साथ उसे लगाने वाले अधिकारी/कर्मचारी का नेम प्लेट भी लगा दिया जाता है। पूर्वोत्तर रेलवे के तीनों मंडलों में रेलपथ के किनारे खाली पड़ी भूमि पर तीन-तीन ग्रीन नर्सरियाँ भी विकसित की गई हैं।
वर्तमान परिवेश में जनाकांक्षाओं को पूरा करते हुये भारतीय रेल सबसे संरक्षित, सुरक्षित, गतिमान, हरित एवं पर्यावरण मित्रवत यातायात साधन के रूप में उभरी है।

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