धर्म-कर्म
काशी का नागेश्वर नाग कुंड जहां शिवभक्तों का उमड़ता है रेला
महर्षि पतंजलि इसी रहस्यमई कूप के रास्ते काशी से नागलोक जाकर करते थे तपस्या
वाराणसी। काशी का नागेश्वर नाग कुंड की बनावट इंसानों की सोच से परे है। कुंड के बीचो-बीच नागकुपेश्वर महादेव का शिवलिंग है। स्कंद पुराण के अनुसार, महर्षि पतंजलि जो नाग के शेषावतार थे। ऐसी मान्यता है कि नाग कूप के रास्ते से नागलोक में जाकर तपस्या किया करते थे। महर्षि पतंजलि ने इस स्थान से योग सूत्र की रचना की थी। उन्होंने नागेश्वर महादेव की स्थापना की थी। इस शिवलिंग के नीचे एक होल है जिसके बाद 7 सात तल है जो धरती को नागलोक से जोड़ती है।
साल में एक दिन नाग पंचमी को नागेश्वर महादेव शिवलिंग के दर्शन होते हैं। नाग पंचमी के दिन नाग कूप का पानी पंप के जरिए खींच लिया जाता है तब वहां 70 फीट नीचे मौजूद शिवलिंग नागेश्वर महादेव स्पष्ट नजर आते हैं। पानी निकाल कर नागेश्वर महादेव शिवलिंग की विधि विधान से पूजा की जाती है वह भी कुछ घंटे के लिए क्योंकि कुछ घंटे के बाद अंदर दोबारा से कूप में पानी भरने लगता है। यहां के पुजारी का कहना है कि, स्कंद पुराण में इसे कारकोट नाग कुंड के नाम से जाना जाता है।
यह स्थान महर्षि पतंजलि की तपोभूमि के रूप में भी जाना जाता है। ऐसी मान्यता है कि नाग पंचमी के दिन महर्षि पतंजलि आज भी नाग के रूप में आते हैं और नागकुपेश्वर महादेव शिवलिंग की परिक्रमा करते हैं। महर्षि पतंजलि ने यहां तपस्या की और योगसूत्र की रचना की जिसके कारण कारकोट नाग कूप की महत्ता और बढ़ जाती है। नाग पंचमी के दिन यहां दर्शन करने से कालसर्प दोष से मुक्ति मिल जाती है।