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वाराणसी

“संत की पहचान कर्मों से होती है, वस्त्रों से नहीं” : देवकीनंदन ठाकुर

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वाराणसी में श्रीमद् भागवत कथा के दौरान पूज्य देवकीनंदन ठाकुर ने कहा कि संत की पहचान उसके भेष-भूषा से नहीं, बल्कि उसके कर्मों से होती है। सच्चा संत वह है, जो मान-अपमान दोनों को सहन कर ले, दूसरों के दुख में करुणा और दयाभाव रखे, और परोपकारी एवं सत्यवादी हो। उन्होंने कहा कि सच्चे संत का सानिध्य मिलने से मन के सारे बंधन समाप्त हो जाते हैं।

जीवन में संत, भक्त और ब्राह्मण का अपमान नहीं करना चाहिए, क्योंकि संस्कार हमें आदरणीय का सम्मान करना सिखाते हैं। उन्होंने सनातनियों से अपूज्य की पूजा न करने का आह्वान किया और कहा कि पीर बाबा की मजार पर चादर चढ़ाने वालों में हिंदुओं की संख्या मुसलमानों से अधिक है जो चिंता का विषय है। उन्होंने भगवत भक्ति की महिमा बताते हुए कहा कि संगति ऐसी हो जो भगवान की ओर प्रेरित करे। कथा सुनने से विश्वास और भक्ति बढ़ती है जिसका जीवन में विशेष महत्व है।

ध्रुव चरित्र का उल्लेख करते हुए उन्होंने बताया कि भगवान ने उसकी साधना से प्रसन्न होकर उसे अलग लोक प्रदान किया।कथाक्रम के दौरान उन्होंने कहा कि काशी के लोग विशेष हैं, क्योंकि उनकी आवाज सीधे प्रधानमंत्री तक पहुंचती है।

सनातन बोर्ड की मांग पर जोर देते हुए उन्होंने बॉलीवुड को भारतीय संस्कृति के विनाश का जिम्मेदार ठहराया। साथ ही, जनमानस को जागरूक करने के लिए गोधरा कांड पर बनी फिल्म “साबरमती एक्सप्रेस” देखने का आग्रह किया।

कथा सुनने पहुंचे ब्रजभूषण शरण सिंह ने सनातन बोर्ड की मांग का समर्थन करते हुए इसे दूरगामी सोच का परिणाम बताया। उन्होंने कहा कि मंदिरों की पूजा पद्धति का ज्ञान सरकारी अधिकारियों से अधिक संतों और महात्माओं को है इसलिए सनातन बोर्ड का गठन आवश्यक है।

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इस अवसर पर पूर्व केंद्रीय मंत्री अश्विनी चौबे सहित कई गणमान्य व्यक्तियों ने व्यासपीठ का पूजन किया। कथा के दौरान राम-लक्ष्मण के जनकपुर नगर भ्रमण की लीला का मंचन हुआ जिसे देखकर जनकपुर निवासी भाव-विभोर हो गए। बक्सर वाले मामा जी द्वारा रचित मंगल गीतों ने कार्यक्रम को और भी भव्य बना दिया।

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