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वाराणसी

वाराणसी: वार्ड की उपेक्षा से त्रस्त मोहल्लेवासी करेंगे मतदान का बहिष्कार, बताई मुख्य वजह

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बनारस के हुकुलगंज की गलियों की हालत बेहद खराब है। ऊबड़-खाबड़ रास्ते, जगह-जगह उखड़े हुए चौका-पत्थर, जर्जर पानी की पाइप लाइनें, खुले और टूटे सीवर के ढक्कन, और सड़ चुके बिजली के पोल यहां की हकीकत हैं। यहां का कूड़ा सड़कों पर बिखरा पड़ा रहता है, और यही रास्ता लोगों की रोजमर्रा की जिंदगी का हिस्सा हैं। यहां के पार्षद, विधायक, मंत्री और मेयर सभी भाजपा के हैं। बावजूद इसके, हुकुलगंज की गलियों से गुजरते हुए हर वक्त ठोकर लगने और हाथ-पैर टूटने का खतरा बना रहता है।

इलाके के लोग सरकार को कोसते हैं क्योंकि बीजेपी के जनप्रतिनिधि कभी इस इलाके में झांकने तक नहीं आते। हुकुलगंज का वॉर्ड 11 नगर निगम के अभिलेखों में दर्ज है। यहां की सबसे बड़ी समस्या सीवर और चौका-पत्थर की है। पुराने लोग भी याद नहीं कर पाते कि इस वार्ड में कब चौका-पत्थर बिछा था। कुछ लोग बताते हैं कि हुकुलगंज की यह गली करीब तीस साल पहले कांग्रेस के वक्त पक्की बनी थी। बसपा और सपा की सरकारों के समय कुछ गलियों की मरम्मत जरूर हुई थी, लेकिन अब वे गलियां भी खस्ता हाल में हैं।

हुकुलगंज के जिन इलाकों में गलियां बदहाल हैं, वहां ज्यादातर पिछड़े और अल्पसंख्यक समुदाय के लोग रहते हैं। इन लोगों का मानना है कि, बीजेपी के नेता और कार्यकर्ता उन्हें अपना वोटर नहीं मानते और इसीलिए उन्हें भगवान भरोसे छोड़ दिया गया है। सफाई कर्मचारी भी हफ्ते में एक-दो दिन ही आते हैं। सीवर की सफाई तभी होती है जब लोग सुविधा शुल्क देते हैं। नहीं देने पर सड़क के किनारे मलबा सड़ता रहता है, छुट्टा पशु गुजरते हैं और मलबे को बिखेर देते हैं।

जैसल वाली गली की स्थिति नर्क से भी बदतर – हुकुलगंज की गलियों की बदहाली से परेशान युवाओं ने हाल ही में एक व्हाट्सएप ग्रुप बनाया है। इस ग्रुप का नाम है, “रामजी डेंटर- गली बनवाने के लिए आंदोलन, आप सभी सहयोग करें।” इस ग्रुप की डीपी पर लिखा है, “नर्क से बदतर हुकुलगंज की जैसल वाली गली में सीवर, पानी, रास्ते की समस्या।” इलाके के लोगों ने अनगिनत बार शिकायतें की हैं, लेकिन उनकी सुनवाई नहीं हो रही है।

समस्याओं के समाधान के लिए नगर निगम में अर्जी लगाई गई है। समस्याओं से आजिज आ चुके बड़े-बुजुर्ग अब शिकायत करते-करते थक चुके हैं। बुजुर्गों ने उम्मीद छोड़ दी है। गलियों को सुधारवाने का जिम्मा अब युवाओं ने उठाया है। इन्हीं में से एक हैं सोनू जायसवाल। वह कहते हैं, “हमारी समस्याएं पहाड़ सरीखी हैं। सुबह उठते ही पानी के लिए लाइन लगानी पड़ती है। बजबजाती नालियां, सीवर और गलियों का कोई पुरसाहाल नहीं है। कितनी समस्याएं गिनाएं। सुना था कि मोदी हैं तो मुमकिन है, लेकिन बीजेपी की सत्ता के दस साल गुजर जाने के बावजूद हमारी समस्याओं का कोई ओर-छोर नहीं है।”

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जैसल वाली गली में रहने वाले सोनू के पिता बीजेपी के कट्टर समर्थक हैं। उनकी हर कोशिश नाकाम साबित हुई है। वे नाम न छापने की शर्त पर कहते हैं, “बीजेपी ने चुनाव को लेकर गांव चलो अभियान शुरू किया है। बनारस में पार्टी को गली चलो अभियान शुरू करने की जरूरत है। जाहिर है कि पीएम मोदी गलियां सुधारवाने नहीं आएंगे। लेकिन इलाके के लोगों ने जिन नुमाइंदों को सभासद और मेयर पद पर चुना है, वे भी इधर कभी झांकने नहीं आते। बनारस की आधी से अधिक आबादी गलियों में बसती है और हुकुलगंज की ज्यादातर गलियां गंधा रही हैं। सिर्फ सड़कों पर फसाड लाइटें जलाने से क्या होगा। बदहाल गलियों में जिन लोगों का हाथ-पैर टूट रहे हैं, उनका दर्द सुनने वाला कोई नहीं है।”

हुकुलगंज इलाके के बबलू बीजेपी के मौजूदा विधायक (मंत्री) और पार्षद से खफा हैं। वह कहते हैं, “हमारे इलाके का हाल देख लीजिए। कोई यह नहीं कह सकता है कि ठोकरमार गलियां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इलाके की हैं। चुनाव के वक्त इलाकाई पार्षद बृजेश चंद श्रीवास्तव वोट मांगने आए थे। जीतने के बाद कभी लौटे ही नहीं। हमने उन्हें वोट देकर जिताया और वो आश्वासन गुरु बन गए। बदहाल रास्तों के चलते बहुत से छोटे बच्चों ने अब स्कूल जाना छोड़ दिया है। गलियों में गाड़ियां ही नहीं, ठेले-खोमचे वाले भी आने से कतराते हैं। सड़क पर भीषण गंदगी के चलते हर कोई दुखी है और सरकार की उपेक्षा से खफा है। बारिश के दिनों में इस इलाके की हालत देखते ही बनती है। हर घर में मरीजों का तांता लग जाता है। कोई उल्टी-दस्त की चपेट में होता है तो कोई वायरल बुखार से कराहता है। मुश्किलों का अंतहीन सिलसिला टूटता नजर नहीं आ रहा है।”

कई मकानों में पड़ी दरारें – बेहद जर्जर हो चुकी हुकुलगंज की जैसल वाली गली में कई मकानों की दीवारों पर दरारें पड़ चुकी हैं। 30 वर्षीय युवा मनीष अपने मकान के पिछले हिस्से की दरार दिखाते हुए कहते हैं, “कुछ ही बरस पहले हमने अपने घर की मरम्मत कराई थी। गलियां दरकीं तो हमारा मकान भी दरकने लग गया। मकान की अब दोबारा मरम्मत करानी पड़ेगी। मकान के दरवाजे पर ही सीवर की टंकी है। हमें याद नहीं है कि हमारी गली में नगर निगम ने कभी कोई काम कराया हो। जब से होश संभाला है, नए चौका-पत्थर लगाने के लिए हम बीजेपी नेताओं के यहां गुहार लगाते-लगाते थक गए हैं। न कोई इधर आता है और न ही कोई सुनता है।”

सोनू बताते हैं कि गली में कोई भी साइकिल चलाकर सड़क पार नहीं कर सकता। वह बताते हैं, “सड़क के बीच-बीच में जर्जर सीवर लाइनें इतनी बदहाल हैं कि जीवन नारकीय हो गया है। अपनी शिकायत लेकर इलाके के लोग कई बार पार्षद के घर गए। दो-चार बार कहने पर सीवर की सफाई करा दी जाती है, जबकि पूरी गली में नए सीवर और चौका-पत्थर की ज़रूरत है।”

पानी की समस्या – नसीम का दर्द दूसरा है। वह पानी की समस्या को लेकर परेशान हैं। कहते हैं, “गली से पीने के पानी की जो लाइनें गुजरी हैं, उनमें कई जगह छेद हो गया है। कई जगह पाइपें सीवर लाइनों से जुड़ गई हैं। लोगों को समझ में ही नहीं आता है कि वो सीवर का पानी पी रहे हैं अथवा जल निगम का। पानी से हमेशा बदबू आती रहती है।”इस स्थिति से निराश होकर, हुकुलगंज के लोग अब खुद ही अपने क्षेत्र की समस्याओं को हल करने के लिए संगठित हो रहे हैं। क्या यह आंदोलन बदलाव ला सकेगा या फिर हुकुलगंज की गलियां इसी बदहाली में रहेंगी? यह तो वक्त ही बताएगा।

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