वाराणसी
देश व प्रदेश में आपराधिक मुकदमों की संख्या में बढ़ोत्तरी बड़ी चुनौतीः जस्टिस चंद्रचूड़

रिपोर्ट – प्रदीप कुमार
वाराणसी. सर्वोच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति डॉ डी वाई चंद्रचूड़ ने कहा है कि देश व उत्तर प्रदेश में आपराधिक मुकदमों की संख्या में वृद्धि बड़ी चुनौती है। न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के विधि संकाय के शताब्दी समारोह के उद्घाटन समारोह को बतौर मुख्य अतिथि संबोधित कर रहे थे।
इलाहाबाद हाईकोर्ट में चार लाख तो यूपी के जिला न्यायालयों में 82 लाख से ज्यादा केस लंबित
न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा कि देश में आपराधिक मुकदमों की संख्या में वृद्धि ये बताती है कि अधिवक्ताओं की जिम्मेदारी और विधि की सामाजिक सहभागिता तेजी से बढ़ रही है। उन्होंने बताया कि केवल हाईकोर्ट इलाहाबाद में चार लाख, 65 हजार, 496 आपराधिक वाद लंबित हैं। इसी तरह प्रदेश के जिला स्तरीय न्यायालयों में 82 लाख, 41 हजार, 560 आपराधिक मुकदमों का निबटारा होना शेष है। उन्होंने आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा कि ये इन लंबित मुकदमों में से 30 फीसद बीते साल भर में दाखिल हुए हैं।
ननिर्णय सुनाते वक्त जजमेंटल न हों
न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा कि विधिक क्षेत्र से जुड़े लोगों के लिए सबसे बड़ी चुनौती उनका जजमेंटल होना है। कहा कि कोई भी निर्णय सुनाते समय जजमेंटल नहीं होना चाहिए। वादी को न्याय दिलाना हमारी प्राथमिकता है लेकिन न्याय के लिए पक्षपाती नहीं होना चाहिए।
विधिक शिक्षा के क्षेत्र में बीएचयू ने पेश की मिसाल
उन्होंने बीएचयू के विधि संकाय की चर्चा करते हुए कहा कि, विधि शिक्षा के क्षेत्र में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय ने 70 के दशक में अग्रणी भूमिका निभाई। विधिक शिक्षा से लेकर असहायों तक को निःशुल्क विधिक मदद उपलब्द्ध कराने में विश्वविद्यालय के कार्य सभी के लिए आदर्श हैं। कहा कि राज्य की भूमिका जनता के प्रति कर्तव्यों का निर्वहन करने में होती है जबकि अधिवक्ता के लिए यह काम निर्धारित सीमाओं से परे पीड़ित पक्ष को न्याय दिलाने की होती है। ऐेसे में हमेशा इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि वर्तमान दौर के युवा अधिवक्ताओं पर भविष्य की भी जिम्मेदारी है।
हर विधि छात्र एक गांव गोद ले
हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति राजेश बिंदल ने विधि छात्रों से एक-एक गांव गोद लेने का आह्वान किया। कहा कि देश को विधि जागरूकता की महती आवश्यकता है। विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में। ऐसे में हर विधि छात्र एक-एक गांव को गोद लेकर गांव को विधिक स्तर पर जागरूक करे। उन्हें समझाए कि हर छोटे-छोटे मामलों के लिए वो अदालतों का दरवाजा न खटखटाएं। इनका निबटारा स्थानीय स्तर पर मध्यस्तता से हो। उन्होंने विद्यार्थियों को पूरे शिक्षण काल में न्यूनतम 40 घंटे मध्यस्तता का प्रशिक्षण देने पर जोर दिया।