मिर्ज़ापुर
मंडलीय चिकित्सालय में भ्रष्टाचार का बोलबाला

आयुष्मान कार्ड धारकों को निजी अस्पतालों में भेजा जा रहा इलाज के लिए
मीरजापुर। प्रधानमंत्री की कल्याणकारी योजनाओं को धूल में मिलाने का प्रयास मंडलीय चिकित्सालय में खुलेआम हो रहा है। सरकार जहां स्वास्थ्य सेवाओं को सुलभ बनाने के लिए प्रयासरत है, वहीं यहां के डॉक्टरों की संदिग्ध गतिविधियां गंभीर सवाल खड़े कर रही हैं। आरोप हैं कि सर्जन और हड्डी रोग विशेषज्ञों की मिलीभगत से आयुष्मान कार्ड धारकों को निजी अस्पतालों में इलाज कराने के लिए बाध्य किया जा रहा है।
सूत्रों के अनुसार, चिकित्सालय के बाहर स्थित एक मेडिकल स्टोर का सहारा लेकर डॉक्टर मुनाफाखोरी में लिप्त हैं। मरीजों को ऐसी दवाएं लिखी जाती हैं, जो केवल एक विशेष मेडिकल स्टोर से ही मिलती हैं। यह गोरखधंधा डॉक्टरों और मेडिकल स्टोर संचालकों के बीच रिश्वत के लेनदेन को उजागर करता है। इन दवाओं की कीमत इतनी अधिक होती है कि मरीज आर्थिक दबाव के कारण निजी अस्पताल का रुख करने को मजबूर हो जाते हैं।
हाल ही में रमई पट्टी के एक निवासी ने अपनी माता के इलाज के लिए आयुष्मान कार्ड का इस्तेमाल करने की कोशिश की, लेकिन दवाओं के नाम पर 55 से 60 हजार रुपये की मांग की गई। यह घटना आयुष्मान योजना के तहत मुफ्त इलाज के दावों पर सवालिया निशान लगाती है।
शिकायतों के बावजूद प्राचार्य की निष्क्रियता भी चर्चा का विषय बनी हुई है। फोन कॉल्स का जवाब न मिलने से उनकी भूमिका पर भी सवाल उठ रहे हैं। वहीं, प्रमुख चिकित्सा अधीक्षक की उपस्थिति के बावजूद इस भ्रष्टाचार पर कार्रवाई नहीं हो रही है। चिकित्सालय परिसर में रात्रि 10 बजे के बाद निजी मेडिकल स्टोर संचालकों की सक्रियता व्यवस्था की खामियों को और उजागर करती है। इमरजेंसी वार्ड में भी इन स्टोर संचालकों की उपस्थिति ने चिकित्सालय को निजी हितों का अड्डा बना दिया है।
यह स्पष्ट है कि मंडलीय चिकित्सालय अब स्वास्थ्य सेवाओं के बजाय मेडिकल स्टोर संचालकों के नियंत्रण में काम कर रहा है। शासन-प्रशासन को इस मुद्दे पर तत्काल कार्रवाई करनी चाहिए ताकि मरीजों को सही लाभ मिल सके और भ्रष्टाचार पर लगाम लगाई जा सके।