वाराणसी
बीएचयू की छात्रा इंद्राणी मुर्मू बनीं संथाली जनजाति से शोध करने वाली पहली महिला

वाराणसी। काशी हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) ने एक बार फिर शिक्षा के क्षेत्र में नया इतिहास रच दिया है। विश्वविद्यालय की छात्रा इंद्राणी मुर्मू ने संथाली जनजाति से पहली महिला शोधकर्ता बनकर न केवल अपनी जातीय पहचान को गौरवान्वित किया है, बल्कि समाज के लिए एक प्रेरणा स्रोत भी बनी हैं।
इंद्राणी मुर्मू बीएचयू के बंगला विभाग की छात्रा हैं और झारखंड के एक बेहद पिछड़े इलाके से ताल्लुक रखती हैं। संथाली जनजाति से आने वाली इंद्राणी ने कठिन परिस्थितियों और सामाजिक चुनौतियों को पार करते हुए यह उपलब्धि हासिल की है।
संथाली जनजाति और शिक्षा में संघर्ष
संथाल भारत के प्रमुख मुंडा जातीय समूहों में से एक है। मुख्यतः झारखंड, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, बिहार और असम में बसे इस समुदाय में शिक्षा का स्तर काफी निम्न है। बुनियादी संसाधनों और अवसरों की कमी के कारण अधिकांश लोग उच्च शिक्षा प्राप्त नहीं कर पाते। ऐसे में इंद्राणी का यह कदम पूरे समुदाय के लिए एक मिसाल है।
इंद्राणी के शोध कार्य का विषय बंगला साहित्य है। उनकी इस उपलब्धि पर उनके शोध मार्गदर्शक प्रोफेसर प्रकाश कुमार माहती ने उन्हें शुभकामनाएं दीं। उन्होंने कहा, “इंद्राणी न केवल अपने शोध कार्य के माध्यम से एक नया दृष्टिकोण प्रस्तुत कर रही हैं, बल्कि अपने समुदाय को भी शिक्षा के प्रति प्रेरित कर रही हैं।”
इंद्राणी ने अपनी सफलता का श्रेय अपने गुरुजनों और परिवार को दिया। उन्होंने कहा, “शोध कार्य के दौरान मुझे अपने शिक्षकों का भरपूर सहयोग मिला। अब मैं चाहती हूं कि मेरे समुदाय के लोग शिक्षा के महत्व को समझें और आगे बढ़ें।”
एशिया के सबसे बड़े आवासीय विश्वविद्यालय के रूप में विख्यात बीएचयू एक बार फिर विविधता और समर्पण का प्रतीक बना है। यहां पढ़ने वाले छात्र विभिन्न जातियों, धर्मों और संस्कृतियों से आते हैं और अपने-अपने क्षेत्रों में उत्कृष्ट प्रदर्शन कर विश्वविद्यालय का नाम रोशन करते हैं।