वाराणसी
घूसखोरी के मामले में सिपाही 32 साल बाद दोषमुक्त
वाराणसी। भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत दर्ज 32 साल पुराने घूसखोरी के मामले में विशेष न्यायाधीश (द्वितीय) रजत वर्मा की अदालत ने क्षेत्रीय परिवहन कार्यालय (RTO) प्रयागराज के प्रवर्तन विभाग में तैनात रहे सिपाही रसाल सिंह यादव को दोषमुक्त कर दिया। अदालत ने यह फैसला साक्ष्य के अभाव में सुनाया, जिससे आरोपी को बड़ी राहत मिली।
क्या था पूरा मामला ?
1993 में तत्कालीन एसएसपी इलाहाबाद के आदेश पर एआरटीओ ज्ञानस्वरूप गुप्ता और सिपाही रसाल सिंह यादव सहित अन्य पांच सिपाहियों के खिलाफ थाना दारागंज में भ्रष्टाचार का मामला दर्ज किया गया था। आरोप था कि परिवहन विभाग में 2500 रुपये की रिश्वत ली गई थी, लेकिन जांच के दौरान अदालत में कोई ठोस साक्ष्य पेश नहीं किया जा सका। बरामद की गई धनराशि भी आरोपी से नहीं, बल्कि एआरटीओ के बैग से मिली थी।
दुष्कर्म और पॉक्सो मामले में भी अदालत का बड़ा फैसला
दूसरी ओर, विशेष न्यायाधीश (पॉक्सो एक्ट) अजय कुमार की अदालत ने 2016 में भेलूपुर थाने में दर्ज नाबालिग को बहला-फुसलाकर भगाने और दुष्कर्म के मामले में आरोपी दीपेश कुमार को बरी कर दिया। अदालत ने अभियोजन पक्ष के सबूतों को अपर्याप्त मानते हुए संदेह का लाभ देते हुए आरोपी को दोषमुक्त कर दिया।
न्यायिक प्रक्रिया पर उठे सवाल
दोनों मामलों में आरोपियों को अदालत से राहत मिली, जिससे न्याय प्रक्रिया और जांच की विश्वसनीयता पर सवाल उठने लगे हैं। क्या इतने वर्षों तक चले मुकदमों में साक्ष्य जुटाने में प्रशासन की लापरवाही रही, या फिर आरोप झूठे थे? यह एक गंभीर बहस का विषय है।