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सिकरौरा नरसंहार :  बाहुबली बृजेश सिंह की मुश्किलें बढ़ीं

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सुप्रीम कोर्ट ने दोषमुक्ति पर मंगायी पत्रावली

पूर्वांचल के कुख्यात बाहुबली और पूर्व एमएलसी बृजेश सिंह की मुश्किलें एक बार फिर बढ़ती नजर आ रही हैं। 1986 के बहुचर्चित सिकरौरा नरसंहार कांड में उनकी दोषमुक्ति के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के आदेश दिए हैं। पीड़िता हीरावती देवी की याचिका पर शीर्ष अदालत ने इस केस के मूल रिकॉर्ड को इलाहाबाद हाईकोर्ट और सत्र न्यायालय से तलब किया है, जिससे एक बार फिर इस मामले में नया मोड़ आ सकता है।

क्या है सिकरौरा नरसंहार मामला?

9 अप्रैल 1986 की रात चंदौली जिले के बलुआ थाना क्षेत्र के सिकरौरा गांव में दिल दहला देने वाला नरसंहार हुआ था। तत्कालीन ग्राम प्रधान रामचंद्र यादव, उनके चार मासूम बच्चे मदन, उमेश, टुनटुन और प्रमोद और दो भाई रामजन्म व सियाराम की बेरहमी से हत्या कर दी गई थी। इस हत्याकांड में बृजेश सिंह मुख्य आरोपी थे, लेकिन सत्र न्यायालय ने 2018 में उन्हें दोषमुक्त कर दिया। इसके अलावा, इस मामले में 12 अन्य आरोपी भी बरी कर दिए गए थे।

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सुप्रीम कोर्ट में फिर से खुलेगा मामला

सत्र न्यायालय के फैसले के खिलाफ पीड़िता हीरावती देवी ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में अपील दायर की, लेकिन वहां भी उन्हें राहत नहीं मिली। हाईकोर्ट के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश प्रीतिंकर दिवाकर और न्यायमूर्ति अजय त्यागी की पीठ ने निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखा। हालांकि, इस केस में चार आरोपियों—पंचम सिंह, वकील सिंह, राकेश सिंह और देवेंद्र सिंह—को उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी।

इसके बाद हीरावती देवी ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया, जहां शीर्ष अदालत ने उनकी याचिका स्वीकार कर ली। अब सुप्रीम कोर्ट ने बृजेश सिंह समेत सभी आरोपियों की दोषमुक्ति के खिलाफ सुनवाई का आदेश जारी किया। सुनवाई के दौरान पंचम सिंह सहित चार दोषियों की जमानत याचिका भी खारिज कर दी गई।

बृजेश सिंह का आपराधिक इतिहास

बृजेश सिंह, जो वाराणसी के धौरहरा गांव के रहने वाले हैं, का पहला हत्या का मुकदमा 1985 में दर्ज हुआ था। 1989 में उनका नाम हिस्ट्रीशीट में जोड़ा गया, और 1998 में उन्हें अंतरराज्यीय गैंग नंबर 195 का सरगना घोषित किया गया। वर्ष 2008 में ओडिशा के भुवनेश्वर से उनकी गिरफ्तारी हुई, लेकिन इससे पहले 22 वर्षों तक वे फरार रहे। इस दौरान उनका खौफ पूर्वांचल के अपराध जगत में बना रहा।

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जेल में रहते हुए भी उन्होंने 2016 में एमएलसी का चुनाव जीता। अगस्त 2022 में वे जमानत पर जेल से बाहर आए, और उनकी पत्नी अन्नपूर्णा सिंह वाराणसी सीट से दूसरी बार एमएलसी चुनी गईं।

क्या मिलेगा नरसंहार पीड़ितों को न्याय?

सुप्रीम कोर्ट में दायर अपील में पीड़िता हीरावती देवी ने कहा कि इस जघन्य हत्याकांड के बावजूद बृजेश सिंह और अन्य आरोपियों को बरी किया जाना न्याय के खिलाफ है। गवाहों के बयान में भिन्नता के आधार पर अदालत ने उन्हें छोड़ दिया था, लेकिन इस हत्याकांड के पीछे की सच्चाई को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। अब देखना यह होगा कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला क्या मोड़ लेता है और क्या सिकरौरा नरसंहार के पीड़ितों को न्याय मिल पाएगा?

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