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वाराणसी

बाबू जगत सिंह को सेंट हेलना भेजने का निर्णय अंग्रेजों ने क्यों लिया ?

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रिपोर्ट -‌ डॉ. अरविंद कुमार सिंह

सारनाथ की खुदाई का श्रेय बाबू जगत सिंह को ना कि कनिंघम को

प्रथम स्वतंत्रता युद्ध 1977 में काशी में लड़ी गई

वाराणसी । “लास्ट हीरो आफ बनारस – बाबू जगत सिंह ,पुस्तक के संदर्भ में तीन बातें कहना चाहूंगा। प्रथम, यदि एच ए कुरैशी जैसा फारसी का विद्वान इस पुस्तक को ना लिखता, तो इतिहास के गर्त से निकलकर बाबू जगत सिंह जैसे स्वतंत्रता संग्राम सेनानी से हम आज परिचित न होते। दूसरा, वाराणसी के सारनाथ की खोज का श्रेय बाबू जगत सिंह को जाता है ना कि कनिंघम को । तीसरा, नेपोलियन के पराजय के बाद अंग्रेजों ने उसे अफ्रीका के सेंट हेलना द्वीप पर कैद किया ।

बाबू जगत सिंह को भी अंग्रेजों ने अपनी हुकूमत के लिए उतना ही खतरनाक पाया, जितना वह नेपोलियन को मानते थे । पर जगत सिंह चतुर निकले ,वतन छोड़ने के बजाय आपने गंगासागर में सागर समाधि ले ली” । उपरोक्त बातें  बीस जुलाई को माटी नामक पूर्वांचल संस्था द्वारा नई दिल्ली के इंदिरा गांधी कला केंद्र में पाठक समागम के अंतर्गत बोलते हुए संस्था के अध्यक्ष एवं वरिष्ठ पत्रकार राम बहादुर राय ने कही।

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पुस्तक समीक्षा के अंतर्गत बोलते हुए अनंत विजय ने कहा- “इस कार्यक्रम में आपकी उपस्थिति बतलाती है कि अभी पाठक बचा हुआ है । यह पुस्तक इतिहास की उन कमियों को पूरा करता है जहां बात जन श्रुतियों के माध्यम से नहीं वरन फैक्ट एंड फिगर के आधार पर कही गई है। बाबू जगत सिंह स्वतंत्रता सेनानी के अतिरिक्त पर्शियन भाषा के विद्वान एवं कवि भी थे । बाबू जगत सिंह टाउन प्लानर भी थे। जिसका जीता जागता उदाहरण जगतगंज मोहल्ला है ,वाराणसी में । सर्वधर्म समभाव के उत्कृष्ट उदाहरण है आप।आपने मस्जिद बनवाई , मंदिर बनवाया और गुरुद्वारे के लिए जमीन दी। पुस्तक की प्रमाणिकता इतनी है कि आप जो भी प्रश्न उठाते हैं, उसका उत्तर यह पुस्तक देने में सक्षम है।

पुस्तक के लेखक एच ए कुरैशी ने अपने उद्बोधन में सभागार के अंदर उपस्थित श्रोताओं से कहा-” जगत बाबू, पर्शियन भाषा की जानकारी ही नहीं रखते थे, वे एक उत्कृष्ट कवि भी थे। यही कारण था कि अवध के नवाब ने आपको नाइटेंगल ऑफ़ इंडिया की उपाधि दी थी । कम समय में 12000 के लगभग लड़ाकों को तैयार करना और ब्रितानी हुकूमत से टकराना उनके व्यूह रचना का एक उत्कृष्ट उदाहरण है । यही कारण था कि अंग्रेजों ने उन्हें सेंट हेलना भेजने का निर्णय लिया। सारनाथ का उत्खनन 27 फीट गहरे तक कराकर , प्राप्त अस्थियों को गंगा में प्रवाहित करना और उस स्थान को जगत सिंह स्तूप के रूप में संरक्षित करना, उनके अन्य धर्म के प्रति आदर का भाव दर्शाता है। अतः सारनाथ के सर्वप्रथम उत्खनन का श्रेय बाबू जगत सिंह को ही जाता है।”   

अपने आत्मीय उद्बोधन में रायल परिवार बाबू जगत सिंह की छठवीं पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करने वाले बाबू प्रदीप नारायण सिंह ने बतलाया कि यह पुस्तक 5 वर्षों के समया अवधि के अंतर्गत शोध समिति के सदस्यों के अथक परिश्रम का परिणाम है। मैं सभी के प्रति आदर भाव से नतमस्तक हूं।    

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इस अवसर पर वाराणसी से अनूप श्रीवास्तव ,अशोक आनंद ,डॉ अरविंद कुमार सिंह, राजेंद्र दुबे, शमीम एवं अमित उपस्थित रहे।

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