चन्दौली
श्रद्धालुओं के रक्षक मार्कण्डेय माझी को नहीं मिली अब तक सरकारी पहचान, उपेक्षा के शिकार

चहनियां (चंदौली)। बलुआ स्थित पश्चिम वाहिनी गंगा तट पर जब श्रद्धालु स्नान के लिए आते हैं, तो उनकी सुरक्षा की सबसे बड़ी गारंटी बनते हैं बलुआ के निवासी मार्कण्डेय माझी। वर्षों से गंगा घाट पर लोगों की सेवा में समर्पित यह व्यक्ति अब तक सैकड़ों लोगों की जान बचा चुके हैं। बावजूद इसके, प्रशासन की ओर से उन्हें न तो कोई मानदेय मिलता है और न ही कोई सरकारी सहायता।
मार्कण्डेय माझी मूल रूप से नाव चलाकर अपनी जीविका चलाते थे। लेकिन जब से बलुआ घाट पर पक्के पुल का निर्माण हुआ है, उनकी रोज़ी-रोटी पर संकट आ गया है। इसके बावजूद उन्होंने गंगा सेवा को कभी नहीं छोड़ा। चाहे कोई पर्व हो या विशेष स्नान, वह और उनकी टीम हर वक्त घाट पर श्रद्धालुओं की सुरक्षा में तैनात रहते हैं।
जब भी गंगा में कोई दुर्घटना होती है — चाहे वह डूबने की हो या शव की खोज की — पुलिस प्रशासन द्वारा ‘प्राइवेट गोताखोर’ के नाम पर सबसे पहले मार्कण्डेय माझी और उनकी टीम को बुलाया जाता है। बलुआ घाट से लेकर टांडा घाट तक कोई भी हादसा हो, स्थानीय प्रशासन उनकी सेवाओं पर ही निर्भर रहता है। इसके बावजूद अब तक उन्हें किसी प्रकार की सहायता नहीं मिली।
गंगा सेवा समिति के अध्यक्ष दीपक जायसवाल ने बताया कि, “हर बड़े पर्व, जैसे माघी पूर्णिमा, गंगा दशहरा, छठ पूजा आदि के अवसर पर एनडीआरएफ के साथ-साथ मार्कण्डेय माझी और उनकी टीम को घाट पर लगाया जाता है। लेकिन उनके समर्पण को अब तक सरकारी मान्यता नहीं मिल पाई है।”
उन्होंने आगे कहा कि मार्कण्डेय माझी हर दिन सुबह घाट पर मौजूद रहते हैं, चाहे कोई पर्व हो या सामान्य दिन। उनकी उपेक्षा प्रशासन की संवेदनहीनता को दर्शाती है। समिति की मांग है कि ऐसे समर्पित व्यक्तियों को हर महीने कम से कम एक निश्चित मानदेय दिया जाए, ताकि वे अपनी सेवा को सम्मानजनक रूप से जारी रख सकें।