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वाराणसी

शंकराचार्य की मांग: हिंदू बच्चों को मिले धार्मिक शिक्षा, जरूरत पड़े तो संविधान में संशोधन करें

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वाराणसी। महाकुंभ 2025 में जारी धर्म संसद में शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने हिंदू बच्चों के लिए धार्मिक शिक्षा की अनिवार्यता पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि धर्म की शिक्षा हर हिंदू बच्चे का मौलिक अधिकार है और यदि आवश्यक हो तो इसके लिए संविधान में संशोधन किया जाना चाहिए।

शंकराचार्य ने संविधान की धारा-30 का हवाला देते हुए कहा कि आजादी के बाद अल्पसंख्यकों को अपने धार्मिक शिक्षण संस्थान स्थापित करने और चलाने का अधिकार मिला, लेकिन हिंदू समाज को यह सुविधा नहीं दी गई। इसका नतीजा यह हुआ कि आज 75 वर्षों के बाद भी हिंदू बच्चे अपने धर्म की शिक्षा से वंचित रह गए हैं और कई धर्मांतरण के लिए मजबूर हो रहे हैं।

परम धर्म संसद ने घोषणा की कि हर हिंदू बच्चे को धार्मिक शिक्षा प्राप्त करने का मौलिक अधिकार मिलना चाहिए और इसके लिए पर्याप्त संसाधन और वातावरण उपलब्ध कराया जाना चाहिए। शंकराचार्य ने कहा कि प्राचीन काल में धर्म शिक्षा हमारे जीवन का अनिवार्य हिस्सा थी, लेकिन आज यह लगभग समाप्त हो गई है।

उन्होंने जोर देकर कहा कि मानव जीवन का एक प्रमुख पहलू धार्मिकता है और धर्म के बिना जीवन अधूरा माना जाता है। गुरुकुल शिक्षा प्रणाली में विद्यार्थियों को धर्म के नियमों और मर्म को समझाया जाता था, जिससे वे धर्मानुकूल जीवन व्यतीत कर सकें। उन्होंने कहा कि प्राचीन गुरुओं द्वारा दी गई सीख “सत्यम वद, धर्मं चर” आज भी प्रासंगिक है और इसे पुनर्स्थापित करने की जरूरत है।

शंकराचार्य की यह मांग मौजूदा शिक्षा प्रणाली पर एक महत्वपूर्ण बहस छेड़ सकती है, जिसमें धार्मिक शिक्षा को पुनः मुख्यधारा में लाने की आवश्यकता पर विचार किया जा रहा है।

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