गाजीपुर
रिटायर्ड फौजी ने मगई नदी पर पुल निर्माण का उठाया बीड़ा

रिटायरमेंट की 10 लाख रुपये की राशि पुल निर्माण के लिए दान में दी
गाजीपुर। जिले के नोनहरा थाना क्षेत्र के पयामपुर छावनी गांव में सेना के रिटायर्ड इंजीनियर रविंद्र यादव ने अपनी मेहनत और गांववालों के सहयोग से मगई नदी पर पुल बनाने का बीड़ा उठाया है। दशरथ मांझी की तरह अपने संकल्प और समर्पण से उन्होंने वो कर दिखाया, जो वर्षों से सरकार और जनप्रतिनिधि नहीं कर सके।
रविंद्र यादव, जो सेना के इंजीनियरिंग कोर में 55 इंजीनियर रेजिमेंट से सेवानिवृत्त हुए हैं, अपने रिटायरमेंट के बाद जब गांव लौटे तो उन्होंने देखा कि गांव सहित आसपास के 15 गांवों के लोगों को मगई नदी पार करने के लिए भारी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। आजादी के बाद से कई जनप्रतिनिधियों से पुल निर्माण की मांग की गई, लेकिन हर बार केवल आश्वासन ही मिला। बाढ़ के दौरान लकड़ी का अस्थायी पुल बह जाता है, जिससे गांव का संपर्क पूरी तरह कट जाता है।

रविंद्र यादव ने अपनी रिटायरमेंट की 10 लाख रुपये की राशि पुल निर्माण के लिए दान में दी। इसके बाद गांववालों से करीब 60-70 लाख रुपये का चंदा एकत्र किया गया। जो लोग आर्थिक रूप से योगदान नहीं दे सकते थे, उन्होंने श्रमदान कर पुल निर्माण में मदद की।
25 फरवरी 2024 को इलाहाबाद हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति शेखर कुमार यादव ने पुल का भूमि पूजन और शिलान्यास किया। वर्तमान में नदी में दो मजबूत पिलर तैयार हो चुके हैं और दोनों किनारों पर अप्रोच मार्ग भी बन चुका है। अब पुल की स्लैब की ढलाई का काम तेजी से चल रहा है।
पुल की जरूरत क्यों है महत्वपूर्ण?
गाजीपुर से इस गांव की दूरी केवल 18 किलोमीटर है, लेकिन नदी के कारण लोगों को 42 किलोमीटर का चक्कर लगाकर जाना पड़ता है। नोनहरा थाना, जो महज 3 किलोमीटर की दूरी पर है, वहां पहुंचने के लिए 30 किलोमीटर की यात्रा करनी पड़ती है। ऐसे में पुल बनने से स्थानीय लोगों को समय और संसाधनों की बचत होगी।
रविंद्र यादव ने अपने सिविल जेई डिप्लोमा और आर्किटेक्ट की देखरेख में पुल की डिजाइनिंग और निर्माण की जिम्मेदारी खुद उठाई है। 105 फीट लंबे इस पुल का निर्माण कार्य अब अंतिम चरण में है, और जल्द ही 15 गांवों के हजारों लोगों को इसका लाभ मिलेगा।
सरकार से मिली केवल आश्वासन की घुट्टी
रविंद्र यादव ने बताया कि पुल निर्माण के लिए वर्षों से संघर्ष जारी है। यहां तक कि इस गांव के पास ही जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा का भी गांव है, जो गाजीपुर के सांसद और रेल राज्य मंत्री भी रह चुके हैं। बावजूद इसके, कोई भी जनप्रतिनिधि पुल निर्माण के लिए ठोस कदम नहीं उठा सका।
इस पुल का निर्माण केवल एक ढांचागत सुविधा नहीं है, बल्कि यह गांववालों के आत्मनिर्भरता और सामूहिक सहयोग का प्रतीक बन गया है। सेना के जवान की यह पहल प्रशासन के लिए एक सबक है और जनता के लिए उम्मीद की किरण।