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वाराणसी

मातृ और नवजात शिशु देखभाल में परिवार के सभी सदस्यों की हो अहम भूमिका

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‘फैमिली पार्टिसिपेटरी केयर’ कार्यक्रम जनपद के सभी ब्लॉकों में जल्द शुरू होगा

रिपोर्ट -‌ अंजली मिश्रा

वाराणसी। मातृ एवं नवजात शिशु देखभाल में परिवार के सभी सदस्यों खासकर पुरुषों की सहभागिता को सुनिश्चित करने के लिए जल्द ही जनपद में ‘फैमिली पार्टिसिपेटरी केयर यानि परिवार सहभागी देखभाल (एफ़पीसी) कार्यक्रम की शुरुआत की जाएगी। इसको लेकर दो दिवसीय प्रशिक्षण कार्यशाला का समापन मंगलवार को मुख्य चिकित्सा अधिकारी कार्यालय के धन्वंतरि सभागार में हुआ। प्रशिक्षण में हर ब्लॉक से एक एक ब्लॉक सामुदायिक प्रक्रिया प्रबन्धक (बीसीपीएम), सामुदायिक स्वास्थ्य अधिकारी (सीएचओ) और एएनएम को प्रशिक्षित किया गया। साथ ही इन्हें मास्टर ट्रेनर भी बनाया गया, जो ब्लॉक पर जाकर सभी स्टाफ नर्स, सीएचओ, एएनएम, संगिनी और आशाओं को प्रशिक्षित करेंगे।

सीएमओ डॉक्टर संदीप चौधरी के निर्देशन व न्यूट्रीशियन इंटरनेशनल (एनआई) और न्यू कान्सैप्ट (एनसीआईएस) संस्था के संयुक्त तत्वावधान में प्रशिक्षण का आयोजन किया गया। डिप्टी सीएमओ (आरसीएच) डॉक्टर एचसी मौर्य के नेतृत्व में प्रशिक्षक संजय वर्मा और प्रभा शर्मा ने समस्त स्वास्थ्य कर्मियों को बताया कि मातृ व शिशु स्वास्थ्य की देखभाल में परिवार की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। परिवार के सहयोग से गर्भवती और धात्री महिला साथ ही नवजात शिशु के पोषण में सहयोग दिया जा सकता है। इसमें परिवार के पुरुषों को भी शत-प्रतिशत सहयोग करना चाहिए। कहा कि गर्भवती महिला को कम से कम चार प्रसव पूर्व जांच कराने और प्रसव पश्चात देखभाल में परिवार को पूरा सहयोग करना चाहिए।

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इस दौरान गृह आधारित नवजात शिशु देखभाल (एचबीएनसी), गृह आधारित बाल देखभाल (एचबीवाईसी), कंगारू मदर केयर (केएमसी) के बारे में विस्तार से जानकारी दी गई। परिवार की सहभागिता से मातृ एवं शिशु मृत्यु दर को कम किया जा सकता है। इसके लिए गर्भवती व धात्री महिलाओं और नवजात शिशु के परिवार के सदस्यों को प्रशिक्षित करने की ज़िम्मेदारी स्वास्थ्य कर्मियों को दी गई है।

प्रशिक्षण में बताया गया कि गर्भावस्था के दौरान स्वस्थ व संतुलित खानपान से पेट में पल रहे भ्रूण को बेहतर पोषण मिलता है। साथ ही दोनों की सेहत भी अच्छी बनी रहती है। प्रसव के समय को समस्या भी नहीं होती है। कई बार अपने खानपान पर ध्यान न देने से गर्भवती, उच्च झोखिम की श्रेणी में आ जाती हैं। उनमें हीमोग्लोबिन की कमी होने लगती है। प्रसव के दौरान अत्यधिक रक्तस्त्राव के कारण काफी समस्या उत्पन्न होती है। उसे कैसे रोकना है, इससे संबंधित जानकारियां, इसके साथ ही जन्म लेने के बाद बच्चों को ऑक्सीजन देने की आवश्यकता होती है तो ऑक्सीजन कैसे देना है, डॉक्यूमेंटेशन कैसे करना है, प्रसव पूर्व एवं पश्चात जांच कैसे करना है, प्रसव के दौरान शिशु की स्थिति को कैसे समझना है, आदि के बारे में विस्तार से जानकारी दी गई।

बच्चे के जन्म देने के बाद बच्चे की मां द्वारा किस तरीके की सावधानियां बरतनी हैं और बच्चे की देखभाल कैसे करनी है, इससे संबंधित जानकारियां दी गई हैं। जन्म लिए शिशु को जानलेवा रोगों से बचाने के लिए कब-कब टीकाकरण कराना है।

दो दिवसीय प्रशिक्षण में करीब 25 लोगों को प्रशिक्षित किया गया। इस मौके पर एनयूएचएम के सीसीपीएम कौशल चौबे, बीसीपीएम, सीएचओ, एएनएम एवं न्यूट्रीशन इंटरनेशनल से मंडलीय समन्वयक अपराजिता सिंह मौजूद रहीं।

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