मिर्ज़ापुर
ध्रुव-चरित्र की मार्मिक कथा सुन भावुक हुए श्रोता

मिर्जापुर। नगर के तिवराने टोला स्थित डॉ. भवदेव पाण्डेय शोध संस्थान में चल रहे श्रीमद्भागवत सप्ताह महोत्सव के अंतर्गत मंगलवार को व्यासपीठ से आचार्य डॉ. ब्रह्मानन्द शुक्ल ने जब राजा उत्तानपाद के पुत्र ध्रुव की कथा का विस्तारपूर्वक वर्णन किया, तो वातावरण भावविभोर हो गया। कथा इतनी मार्मिक थी कि स्वयं आचार्य शुक्ल की आंखें छलक पड़ीं और श्रोताओं की आंखों से भी अश्रुधारा बह निकली।
डॉ. शुक्ल ने बताया कि किस प्रकार राजा उत्तानपाद की गोद में बैठे ध्रुव को उनकी सौतेली माता सुरुचि ने जबरन नीचे उतार दिया और क्रूर वचनों के साथ अपमानित किया। सुरुचि ने कहा कि यदि पिता की गोद में स्थान चाहिए तो मेरी कोख से जन्म लेना होगा। यह सुनकर ध्रुव का हृदय टूट गया, पर उन्होंने हार नहीं मानी।
अपमान से व्यथित बालक ध्रुव जब अपनी मां सुनीति के पास पहुंचे, तो माता ने उन्हें साहस और धैर्य का पाठ पढ़ाया। डॉ. शुक्ल ने कहा कि यह सुनीति का ही अद्भुत दृष्टिकोण था, जिन्होंने बालक ध्रुव को प्रतिशोध की भावना की बजाय तप और वीरता का मार्ग दिखाया। उन्होंने कहा कि आज की माताओं को भी यही सीख देनी चाहिए कि बच्चों में राग-द्वेष नहीं, बल्कि पराक्रम और सहनशीलता का भाव भरा जाए।
कथा में आगे बताया गया कि जब ध्रुव वन की ओर चल पड़े, तो मार्ग में देवर्षि नारद मिले। नारदजी ने पूछा, “कहाँ जा रहे हो?” ध्रुव ने उत्तर दिया, “मैं सिंहासन प्राप्त करने जा रहा हूँ।” यह उत्तर सुनकर नारदजी ने उनका मार्गदर्शन किया। ध्रुव ने केवल पाँच महीने की कठोर तपस्या से देवताओं को चकित कर दिया और अंततः स्वयं भगवान नारायण को प्रकट होकर उन्हें दर्शन देने पड़े।
डॉ. शुक्ल ने कहा कि ध्रुव की यह तपस्या हमें सिखाती है कि कठोर परिश्रम और अटल संकल्प से असंभव को भी संभव किया जा सकता है। उन्होंने श्रोताओं को भगवान का मानसिक जप करते रहने की सलाह दी, जिससे नकारात्मक विचारों का शमन होता है और जीवन में शांति और स्थिरता आती है।
आचार्य शुक्ल ने छत्रपति शिवाजी का उदाहरण देते हुए कहा कि जिस प्रकार माता जीजाबाई की प्रेरणा से शिवाजी ने वीरता का मार्ग अपनाया और इतिहास के पन्नों में अमर हो गए, उसी प्रकार आज भी माताएं अपने बच्चों को सही दिशा दे सकती हैं।
धार्मिक कथा के माध्यम से डॉ. शुक्ल ने लोकजीवन के उत्थान के सरल और व्यावहारिक उपाय भी प्रस्तुत किए, जो आमजन के लिए अत्यंत लाभकारी हैं।
कार्यक्रम की शुरुआत में डॉ. ब्रह्मानन्द शुक्ल का स्वागत श्री वृजदेव पाण्डेय, श्री सलिल पाण्डेय, प्रो. शिशिर पाण्डेय एवं यथार्थ पाण्डेय द्वारा पुष्पगुच्छ एवं अंगवस्त्र देकर किया गया।
कार्यक्रम में बड़ी संख्या में श्रद्धालुजन उपस्थित रहे और कथा का रसपान करते हुए अध्यात्म और प्रेरणा का अनुभव किया।