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वाराणसी

“भारत के लोकतांत्रिक पहचान का उत्सव है गणतंत्र दिवस”: पायल लक्ष्मी सोनी 

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वाराणसी। गणतंत्र दिवस भारत के एक संप्रभु लोकतांत्रिक गणराज्य के रूप में याद किया जाने वाला दिन है जो ब्रिटिश शासन से एक संप्रभु राष्ट्र में एक बड़े बदलाव का प्रतीक माना जाता है। इसी दिन भारत को लोकतांत्रिक पहचान मिली और संविधान लागू किया गया था। भारतीय संविधान ने देश के हर नागरिक को समान अधिकार दिए और देश का नया स्वरूप दिया। देश का लोकतंत्र जीवित रहे इसका प्रयास प्रत्येक व्यक्ति के लिए जरूरी है।

डॉ. भीमराव अंबेडकर ने कहा था-
‘संविधान केवल एक कानूनी दस्तावेज नहीं है,यह जीवन का एक मार्गदर्शन है।’
            
भारत की संविधान सभा ने इंपीरियल लेजिस्लेटिव कॉउंसिल से भारतीय डोमिनियन के विधायी कार्यों को ले लिया। इसने 26 नवंबर 1949 को संविधान के प्रारूप को मंजूरी दे दी। संविधान के प्रभावी होने के लिए एक प्रारंभ तिथि का चयन किया जाना शेष था। 1950 के प्रारंभ की किसी तिथि को चुनना स्पष्ट रूप से सुविधाजनक था, नए वर्ष का पहला दिन चुनना पुराने शासकों की नकल करने जैसा होता और जनवरी के अंतिम दिन का चयन गांधी जी की हत्या की तिथि के निकट होता जो उचित नहीं होता।

ऐसे में प्रश्न यह था कि जनवरी में कौन सी तिथि हो सकती है? 20 वर्ष पूर्व जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने 26 जनवरी,1930 को पूर्ण स्वराज दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया था,इसलिए इस तिथि को गणतंत्र दिवस के रूप में मनोनीत किया गया ( केसरी 27 जनवरी, 1950)।
                  
हालांकि पूर्ण स्वतंत्रता को स्वीकार तो कर लिया गया, लेकिन इससे पहले के पांच दशकों में सैकड़ो गुमनाम क्रांतिकारियों और उनके परिवारों को पूर्ण स्वतंत्रता के लिए मृत्यु,निर्वासन, कारावास और संपत्ति की जब्ती का सामना करना पड़ा था, इन क्रांतिकारियों की हमेशा से अपेक्षा की गई है। इसलिए आज के नागरिकों को इस स्वतंत्रता की कीमत पहचानते हुए अपनी मातृभूमि के प्रति निष्ठावान होने की आवश्यकता है।

वीर सावरकर ने कहा था कि – ‘प्रत्येक नागरिक जिसकी अपनी मातृभूमि के प्रति निष्ठा संदेश से ऊपर है, बिना शर्त और पूरे दिल से है,वह ब्रिटिश गुलामी से अपनी मातृभूमि की मुक्ति के उपलक्ष्य में उस दिन राष्ट्रीय समारोह में खुशी से शामिल हुए बिना नहीं रह सकता। हम उस दिन प्रांत,व्यक्ति और पार्टी के अपने छोटे-छोटे झगड़ों को भुला दें और केवल एक और साझा मंच अपने संकुचित मोर्चों को छोड़, एक मातृभूमि के मंच पर दुनिया के सामने अपने राष्ट्रीय जीत की घोषणा करें’।
     
गणतंत्र दिवस के अवसर पर हमें स्वतंत्रता के बाद विकसित होते भारत पर अपना ध्यान केंद्रित करने के साथ-साथ महापुरुषों द्वारा कहे गये कथन, उनके बलिदानों, देश की समस्याओं एवं चुनौतियां की ओर ध्यान देने की आवश्यकता है। साथ ही उन समस्याओं के समाधान की ओर चिंतन करने की भी जरूरत है। देश में कई गंभीर मुद्दे हैं जिसपर देश के हर नागरिक का ध्यान होना चाहिए एवं बुद्धिजीवियों को इस विषय पर विमर्श एवं परिचर्चा करने की आवश्यकता है।

कई बार ऐसा होता है समस्याएं या भविष्य में कोई घटित होने वाली घटनाएं सुक्ष्म रूप से हमारे आस- पास पहले से हो रही होती हैं परंतु हमें नजर नहीं आती। आतंकवाद,भ्रष्टाचार और वैचारिक असहिष्णुता युवाओं में होते नैतिक पतन का होना, यह देश की भीषण चुनौतियां हैं। जिस पर आगे जाकर उनका समाधान सुनिश्चित होना चाहिए। यह मुद्दे न केवल केंद्र एवं राज्य सरकारों की समस्या है बल्कि प्रत्येक नागरिक का उत्तरदायित्व है कि वह समस्या को दूर करने का प्रयास करे एवं अपने देश के उत्थान,उसके विकास के लिए निरंतर अग्रसर रहे। यह कह सकते हैं कि राष्ट्र चेतना का बोध,राष्ट्र उत्थान में नींव का पत्थर है।
               

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इसमें कोई दो राय नहीं कि स्वतंत्रता के बाद देश का विकास हुआ और आज भी हो रहा है, हम जल्द विश्व पटल पर तेजी से आगे बढ़ रहे हैं। यह हमारे लिए गर्व का विषय है परंतु इसका अर्थ यह नहीं की कोई भी देश यदि आर्थिक रूप से आगे कदम बढ़ा रहा हो और वहीं देश के युवा असंतोष की भावना जागृत कर नशे की ओर बढ़े या पब कल्चर में रम जाएं। युवा ही विकसित भारत का भविष्य है इसलिए उसमें जागृत चेतना होना आवश्यक है।

स्वामी विवेकानंद ने जब दुनिया का भ्रमण किया तब उन्होंने अपने विचार व्यक्त किए थे- ‘भौतिक विकास के आधार पर जो सभ्यताएं स्थापित है,वे यदि एक बार नष्ट हो गईं तो फिर उठ नहीं सकती- एक बार यदि महल ढह गया, तो फिर सदा के लिए धूल में मिल जाएगा’ ।
                

कोई भी सभ्यता खत्म की जाती है तो वह मनुष्यों से की जाती है, भारत सोने की चिड़िया कहा जाता था, लेकिन मनुष्य की गलतियों से यह स्थिति आज नहीं है, प्राचीन इमारतें गवाही देती हैं कि भारत कितना समृद्ध था। कहते हैं इमारतें वहीं रह जाती हैं लेकिन मानव की संस्कृति में बदलाव हुआ तो सारी सभ्यता नष्ट हो जाती है।

भारत पर कई बार विदेशी आक्रांताओं ने लूट मचाई और भारत की समृद्धि को तार-तार कर दिया। भौतिक धन-संपदा स्थायी नहीं होते। स्थायित्व किसी भी देश की संस्कृति, सभ्यताओं की पहचान होती है, जिसे पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरित करना उस दौर में रहने वाले लोगों यानी कि नागरिकों की जिम्मेदारी होती है। लंबी पराधीनता तथा विषम से विषम संकटों के दौर में जिसे संजो कर सुरक्षित रखने में हम कामयाब रहे, स्वतंत्रता के बाद हमारा वह स्वत्व लगातार हमारे हाथ से फिसलता गया है। जिसे संभालने की आवश्यकता है।
     
             

गणतंत्र दिवस का दिन हमें हमारे अधिकारों और कर्त्तव्यों के प्रति जागरूक रहने की याद भी दिलाता है और देश के विकास में योगदान देने के लिए प्रेरित करता है। यह राष्ट्रीय पर्व हम सभी का है किसी विशेष जाति, संप्रदाय या मजहब का नहीं है। जो भारत के प्रति श्रद्धावन है। भारत को माता मानने वाले प्रत्येक व्यक्ति का है। विजय चौक से लाल किले तक होने वाली परेड हमें जरुर देखनी चाहिए एवं अपने नन्हें-मुन्ने बच्चों को जरूर दिखाने की आवश्यकता है, यही वह समय होता है जब हम अपने देश के विभिन्न राज्यों की धरोहरों के प्रत्यक्षदर्शी होते हैं एवं सेवा की शक्तियों का प्रदर्शन देख स्वयं को गौरवान्वित करते हैं और यहीं से हमें प्रेरणा मिलती है कि आज से हमारा प्रत्येक दिन, कार्य, विचार एवं चिंतन देशहित और राष्ट्र सेवा के कार्यों में लीन होगा।

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हमारे आधुनिक सभ्यता बुद्धि के विकास पर आधारित है ना कि संकीर्णताओं को ढक कर वैश्वीकरण और उपभोक्तावाद के अति तेज गति के विकास पर किसी देश की सभ्यताएं,उसका मानक,उनके मूल में होता है और उसी मूल को संभालने की जरूरत है। संकीर्ण स्वार्थ पर टिका हुआ वैश्वीकरण किसी भी राष्ट्र के लिए चिंतनीय है।
               
मन, वाणी और कर्म यदि एक हो तो मुट्ठी भर लोग भी लक्ष्य प्राप्ति कर सकते हैं। स्वामी विवेकानंद जी ने कहा था कि- ‘ भारतवर्ष के पुनरुत्थान में शारीरिक शक्ति से नहीं अपितु आत्मा की शक्ति के द्वारा भागीदार बने,वह उत्थान-विनाश की ध्वजा को लेकर नहीं वरन् शांति और प्रेम की ध्वजा से होगा और हमारी भारत माता पुनः एक बार जागृत होकर अपने सिंहासन पर पूर्व की अपेक्षा अधिक महिमान्वित होकर विराजेगी।’
   

युवाओं के विचारों की हवा ही राष्ट्र की विजय पताका की दिशा निर्धारित करती है।

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