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वाराणसी

प्रेमचंद की कहानी ‘माँ’ का लमही में विशेष पाठन

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वाराणसी। प्रेमचंद का मानना था कि कहानी जीवन के किसी एक रंग या मनोभाव को उजागर करने का माध्यम होती है। उनके अनुसार, एक अच्छी कहानी वही होती है जो किसी मनोवैज्ञानिक सत्य पर आधारित हो और जिसके चरित्र, शैली तथा कथा विन्यास उसी एक भाव को सशक्त रूप से प्रस्तुत करें। प्रेमचंद की कहानी ‘माँ’ इसी दृष्टिकोण को साकार करती है और पाठकों को उनके साहित्य के एक अलग आस्वाद से परिचित कराती है।

यह कहानी माँ के ममत्व के चिता में परिवर्तित हो जाने की मार्मिक गाथा है, जिसमें लेखन बड़े सहज और सजीव रूप से माँ के जीवन-संघर्ष, उसके मन के द्वंद्व, पुत्र में पति की छवि तलाशने की उम्मीद और फिर उसमें उपजी निराशा को प्रस्तुत करता है।

संस्कृति विभाग उत्तर प्रदेश और जिला प्रशासन वाराणसी की प्रेरणा से प्रेमचंद मार्गदर्शन केंद्र ट्रस्ट, लमही वाराणसी द्वारा प्रेमचंद स्मारक स्थल लमही में आयोजित ‘सुनो मैं प्रेमचंद’ कहानी पाठ कार्यक्रम के 1448वें दिवस पर ‘माँ’ का पाठन सेवानिवृत्त प्रवक्ता डॉ. कृष्णा पांडेय ने किया। इस अवसर पर ट्रस्ट के संरक्षक प्रो. श्रद्धानंद, प्रकाश चंद्र श्रीवास्तव, आलोक शिवाजी, डॉ. संजय श्रीवास्तव और निदेशक राजीव गोंड ने उन्हें सम्मानित किया।

कार्यक्रम में रितिक सिंह, पूर्वा राज, अनन्या पंडित, अपर्णा द्विवेदी, अविनाश पांडेय, नेमलता, विष्णु पांडेय, कृशु पांडेय, रोहित गुप्ता, अजय यादव, संजय श्रीवास्तव, राहुल यादव, देव बाबू, पंकज सिंह सहित कई अन्य श्रोता उपस्थित रहे। संचालन आयुषी दूबे ने किया, जबकि स्वागत मनोज विश्वकर्मा ने किया।

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