वाराणसी
ऑल इंडिया एसोसिएशन ऑफ कोल एग्जिक्यूटिव एवं ऑल इंडिया कोल पेंशनर्स एसोसिएशन के बैनर तले 27 मार्च को होगा पीएमओ का घेराव
रिपोर्ट – प्रदीप कुमार
सीएमपीएस -1998 पेंशन आंदोलन का औचित्य
एआइसीपीए और एआईएसीई के बैनर तले देश भर के कोयला पेंशनभोगी अपनी पेंशन के मुद्दे पर आंदोलन के पथ पर हैं क्योंकि उन्हें उनकी वैध पेंशन संशोधन और उसकी वृद्धि से वंचित रखा गया है। इस क्रम में सीधे प्रधानमंत्री तक अपनी पीड़ा पहुँचने के प्रयास में उन्ही के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में आगामी 27-3-2023 को विभिन्न राज्यों से आए पेंशनरों द्वारा धरना दिया जाएगा ।
यह तथ्य है कि कोई संस्थान, कोई एजेंसी या सरकार अपनी जेब से पेंशन नहीं देती । बल्कि, यह कर्मचारी के रोजगार की अवधि के दौरान कर्मचारी द्वारा किए गए अंशदान, नियोक्ता कंपनी के साथ-साथ सरकार के सांकेतिक अंशदान (यदि सरकार ऐसा चाहती है) द्वारा गठित एक कोष द्वारा उत्पन्न आय/राजस्व से भुगतान किया जाता है।
सीएमपीएस-1998 योजना के तहत कर्मचारियों के लिए पेंशन के मामले में, पेंशन कोष को कभी भी उच्च आय-प्राप्ति वाले उपकरणों में निवेश नहीं किया गया था। बल्कि, सीएमपीएफ और अन्य जिम्मेदार एजेंसियां, कॉर्पस में इस बचत से पेंशन का भुगतान करने को प्राथमिकता देती रहीं और पेंशन राशि कमी को कार्यरत कर्मचारियों की वर्तमान अंशदान से पूरा किया जाता रहा । जैसे-जैसे कामकाजी जनशक्ति कम हो रही है और पेंशनरों की संख्या दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है, उपलब्ध पेंशन फंड पेंशनरों को पेंशन देने में असमर्थ होते गए ।
सीएमपीएफ का हर जानकार व्यक्ति इस बात से वाकिफ है और उन्होंने चतुराई से हम सभी को फंसाया है कि पेंशन की समीक्षा/संशोधन/वृद्धि असंभव है । यही कारण है कि 3 साल की निर्धारित समय सीमा में एक्चुरियल रिपोर्ट कभी तैयार नहीं की गई, क्योंकि इससे दोषियों का पर्दाफाश हो जाता । 2017 के उपरांत पीएसी/सीएजी की विभिन्न रिपोर्टों में इन अनियमितताओं को उजागर किया गया है।
हम अब पेंशन फंड के कुप्रबंधन के जाल में फंस गए हैं । यदि खोए हुए पेंशन फंड की भरपाई के लिए कदम उठाए गए होते, तो इस निवेश से होने वाली आय का उपयोग पेंशन आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए बेहतर तरीके से किया जा सकता था । तब कोयले पर लेवी से बचा जा सकता था, लेकिन अब यही लेवी ही पेंशन भुगतान जारी रखने की एकमात्र उम्मीद है।
जब तक कोयला कंपनियों द्वारा अर्जित लाभ में से इस तरह के योगदान को सिस्टम में पंप नहीं किया जाता है, जैसा कि बैंक अपने पेंशनरों के लिए कर रहे हैं, तब तक पेंशन वृद्धि और महंगाई राहत की उम्मीद कम ही है । हमारे अंशदायी पेंशन कोष को कोयला कंपनियों से उनके अर्जित लाभ में से योगदान की आवश्यकता है, जो हमारी पेंशन योजना को वास्तविक अंशदायी पेंशन योजना में बदल देगा ।
इसलिए, उपरोक्त तथ्यों के आलोक में एआइसीपीए और एआइएसीइ संयुक्त रूप से आंदोलन का नेतृत्व कर पेंशन की समीक्षा-संशोधन-वृद्धि के लिए के लिए संघर्ष कर रहे हैं और मांग करते हैं कि सरकार को अपनी विफलता के लिए सीएमपीएफओ की जिम्मेदारी तय करना चाहिए और राज्य के स्वामित्व वाली कोयला कंपनियों से योगदान मांगना चाहिए, ताकि अतीत के सीएमपीएफओ के कुकृत्य की क्षतिपूर्ति की जा सके जिससे खुद-बखुद पेंशन संशोधन और वृद्धि सुनिश्चित होंगें । सीएमपीएफओ की स्थापना 1948 में हुई थी जब पूरा कोयला उद्योग निजी क्षेत्र में था, और आज के परिदृश्य में सीआइएल जैसी सरकारी क्षेत्र की महारत्न कंपनी, सीएमपीएफओ का काम संभालने में सक्षम है जो सभी कोयला उद्योग के पेंशनभोगियों के लिए फायदेमंद होगा।
अतः सीएमपीएफओ को खत्म कर और अन्य आवश्यक सुधार के लिए हमारा संघर्ष जारी है वरना हम लगातार यह कहते हुए ठगे जाते रहेंगे कि फंड नहीं है।