बलिया
पूर्वांचल की राजनीति में नारी नेतृत्व की दस्तक: अस्मिता चांद एक उम्मीद

बलिया। पूर्वांचल, उत्तर प्रदेश का वह भूभाग जिसे राजनीति, संस्कृति और सामाजिक चेतना का गढ़ माना जाता है। यहां के गोरखपुर जिले का एक प्रमुख विधानसभा क्षेत्र है — चिल्लूपार। यह इलाका वर्षों से प्रखर राजनीतिक व्यक्तित्वों की भूमि रहा है, जहां जनता की राजनीतिक सूझबूझ भी उल्लेखनीय रही है।चिल्लूपार की सियासत में अनेक दिग्गज नेताओं का प्रभाव रहा है।
पंडित हरिशंकर तिवारी जैसे नेता छह बार विधायक रहे और सत्ता में बदलाव के बावजूद उनका दबदबा बना रहा। बाद में बहुजन समाज पार्टी से राजेश त्रिपाठी ने अपनी छाप छोड़ी, वहीं हरिशंकर तिवारी के पुत्र विनय शंकर तिवारी ने भी इस परंपरा को आगे बढ़ाया। वर्तमान में फिर से राजेश त्रिपाठी यहां के विधायक हैं और सदन में प्रभावशाली भूमिका में हैं।इस सशक्त राजनीतिक विरासत के बीच एक सवाल लगातार उठता रहा है – आखिर अब तक इस क्षेत्र से कोई महिला विधायक क्यों नहीं बन सकी?
जब देशभर में महिला सशक्तिकरण की बात होती है, आरक्षण पर चर्चा होती है, तो चिल्लूपार जैसे राजनीतिक रूप से जागरूक क्षेत्र में यह अभाव क्यों?इन सवालों के बीच अब एक नया नाम उभर कर सामने आ रहा है — अस्मिता चांद।
बीते डेढ़ दशक से सामाजिक सेवा और राजनीतिक सक्रियता के जरिए जनमानस के बीच जगह बना चुकी अस्मिता चांद भाजपा महिला मोर्चा की उपाध्यक्ष जैसे जिम्मेदार पद पर रहते हुए संगठनात्मक कार्यकुशलता का परिचय दे चुकी हैं। वे किसी विशेष अवसर की नेता नहीं हैं, बल्कि संकट और सेवा दोनों की घड़ी में हर समय जनता के साथ खड़ी नजर आती हैं।
चिल्लूपार की जनता आज एक ऐसे नेतृत्व की ओर देख रही है जो उनकी बातों को सुने, उनके साथ खड़ा हो — और उसमें अस्मिता चांद की छवि दिखाई देती है। उनका जुड़ाव न केवल गांव और मोहल्लों तक सीमित है, बल्कि उन्होंने राज्य और बहुराज्यीय स्तर पर भी समाजसेवा के कार्य किए हैं। उनका अनुभव और प्रतिबद्धता उन्हें अन्य नेताओं से अलग बनाती है।
भारतीय जनता पार्टी ने हमेशा महिला सशक्तिकरण की बात की है, लेकिन जब टिकट बंटवारे की बात आती है तो अक्सर यह अवसर उन लोगों को मिलता है जिनका जनसंपर्क सीमित होता है।
ऐसे में यदि पार्टी चिल्लूपार में अस्मिता चांद पर भरोसा जताती है, तो यह एक साहसिक और दूरगामी निर्णय होगा — न केवल संगठन की नीति और नीयत को प्रमाणित करेगा, बल्कि एक नई लहर को जन्म देगा।नए परिसीमन के बाद चिल्लूपार एक नए राजनीतिक अध्याय की ओर बढ़ रहा है।
जनता बदलाव चाहती है — और वह बदलाव एक शिक्षित, ईमानदार, सेवाभावी महिला नेतृत्व के रूप में देख रही है। ऐसे में अस्मिता चांद नारी सशक्तिकरण की प्रतीक बनकर सामने आती हैं।पूर्वांचल की यह धरती जहां अब तक राजनेताओं की लंबी परंपरा रही है, वहां अब नारी नेतृत्व की भी शुरुआत होनी चाहिए।
अस्मिता चांद को मौका देना भाजपा के लिए रणनीतिक रूप से भी लाभदायक होगा और क्षेत्रीय राजनीति में नारी नेतृत्व के लिए नया मार्ग प्रशस्त करेगा।”जनसेवा, समाज की भागीदारी और मातृशक्ति के सम्मान की बात जब भी होगी, अस्मिता चांद जैसे नेतृत्व को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।”— लेखन: डॉ. देवेंद्र सिंह बघेलवरिष्ठ समाजसेवी, राजनीतिक विश्लेषक एवं जनचेतना के सजग लेखक