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वाराणसी

भाई बहन के प्रेम का प्रतिक है भाईदूज

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रिपोर्ट – प्रदीप कुमार
वाराणसी। हिंदू पंचांग के अनुसार भाई दूज का त्योहार प्रत्येक वर्ष दिवाली से दो दिन बाद कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि पर भाई दूज मनाई जाती है. वस्तुत: इस वर्ष 15 नवंबर बुधवार को मनाया जाएगा। उक्त बातें आयुष्मान ज्योतिष परामर्श सेवा केंद्र के संस्थापक साहित्याचार्य ज्योर्तिविद आचार्य चन्दन तिवारी ने बताया कि ये दिवाली उत्सव का अंतिम दिन होता है. भाई दूज में हर बहन रोली एवं अक्षत से अपने भाई का तिलक कर उसके उज्ज्वल भविष्य के लिए आशीष देती हैं.
बज्र में भाई दूज खास धूम रहती है. यहां मथुरा के विश्राम घाट पर भाई–बहन यमुना नदी में स्नान करते है.
पौराणिक कथा के अनुसार यमुना जी ने अपने भाई यम देवता को घर पर भोजन के लिए आमंत्रित किया था. जब यम, यमुना के घर गए तो बहन ने तिलक लगाकर उनका स्वागत किया, उन्हें भोजन कराया. साथ ही साथ यम देवता से वरदान मांगा कि जो बहन अपने भाई को कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि पर घर में बुलाकर टीका करें और उसे भोजन कराए, उसके भाई को यम का कोई भय न रहे. तब यमराज ने उन्हें तथास्तु कहकर यमुना को उपहार देकर यमलोक वापस चले गए.मान्यता है कि इस दिन बहनें अपने भाईयों को शुभ मुहूर्त में टीका करेंगी उन्हें पूरे साल यम देवता के भय से मुक्त रखते हुए सुख-सौभाग्य प्राप्त होगा. भाई दूज को यम द्वितीया भी कहते हैं.
भाई दूज पर्व का महत्व
भाई दूज वाले दिन जो भाई बहन के हाथ का भोजन करता है, उसे धन, आयुष्य, धर्म, अर्थ और अपरिमित सुख की प्राप्ति होती है. इस दिन देवी यमुना और धर्मराज यम की पूजा करने से जाने-अनजाने में किए गए पाप नष्ट हो जाते हैं. इस दिन चंद्र-दर्शन की परंपरा है और सायंकाल घर के बाहर चार बत्तियों वाला दीपक जलाकर दीप-दान करने का नियम भी है,मान्यता है कि ऐसा करने से कल्याण और समृद्धि प्राप्त होती है।

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