गाजीपुर
बहरियाबाद की सड़कों पर दिखा आस्था का दृश्य, शिवभक्तों ने शुरू की पदयात्रा

गाजीपुर। इस समय बहरियाबाद क्षेत्र के आसपास के इलाकों से कांवरियों का जत्था सड़कों पर जयघोष करते हुए जा रहा है। कांवर यात्रा, जिसे कांवर मेला या श्रावणी मेला भी कहा जाता है, भगवान शिव के भक्तों द्वारा की जाने वाली एक वार्षिक तीर्थयात्रा है, जो मुख्य रूप से भारत के उत्तरी राज्यों में प्रचलित है। यह यात्रा श्रावण (जुलाई-अगस्त) के हिंदू महीने में आयोजित की जाती है, जो भगवान शिव को समर्पित महीना है।
कांवर यात्रा का महत्व और परंपरा
कांवर यात्रा का मुख्य उद्देश्य गंगा नदी के पवित्र जल को शिव मंदिरों में ले जाना और उससे भगवान शिव का अभिषेक करना है। भक्त, जिन्हें कांवरिया कहा जाता है, गेरुए रंग के वस्त्र धारण करते हैं और गंगा नदी के विभिन्न पवित्र घाटों से जल एकत्र करते हैं। इन घाटों में हरिद्वार, गौमुख, सुल्तानगंज और गंगोत्री प्रमुख हैं। कांवरिये इस पवित्र जल को बांस की एक बहंगी (कांवर) में रखते हैं, जिसे वे अपने कंधों पर संतुलित करके ले जाते हैं। यह यात्रा पैदल पूरी की जाती है, और कांवरिये कई किलोमीटर की दूरी तय करते हैं, अक्सर अपने गंतव्य तक पहुंचने में कई दिन लगते हैं। यात्रा के दौरान, कांवरिये “बोल बम” और “हर हर महादेव” जैसे धार्मिक नारे लगाते हुए चलते हैं, जो उनके विश्वास और भक्ति का प्रतीक है।
कठिनाइयां और समर्पण
यह यात्रा शारीरिक रूप से काफी चुनौतीपूर्ण होती है। कांवरिये नंगे पैर चलते हैं और अक्सर भोजन और पानी की कमी का सामना करते हैं। हालांकि, उनकी भक्ति और आस्था उन्हें इन कठिनाइयों को सहने की शक्ति देती है। रास्ते में कई स्वयंसेवी संगठन और स्थानीय लोग कांवरियों की मदद के लिए शिविर लगाते हैं, जहाँ उन्हें भोजन, पानी और चिकित्सा सहायता प्रदान की जाती है।
विविधता और प्रकार
कांवर यात्रा कई प्रकार की होती है:
सामान्य कांवर: इसमें कांवरिये सामान्य गति से चलते हैं और रास्ते में रुक सकते हैं।
डाक कांवर: इसमें कांवरिये बिना रुके दौड़ते हुए यात्रा करते हैं और उन्हें निश्चित समय-सीमा के भीतर शिवलिंग पर जल चढ़ाना होता है। यह अधिक चुनौतीपूर्ण होता है।
खड़ी कांवर: इसमें कांवरिये यात्रा के दौरान कांवर को कभी जमीन पर नहीं रखते। यदि उन्हें रुकना होता है, तो कोई और व्यक्ति कांवर को पकड़ता है।
सांस्कृतिक और सामाजिक प्रभाव
कांवर यात्रा का भारतीय समाज पर गहरा सांस्कृतिक और सामाजिक प्रभाव है। यह यात्रा न केवल धार्मिक भावनाओं को मजबूत करती है बल्कि सामुदायिक एकजुटता और आपसी सहयोग को भी बढ़ावा देती है। यह एक ऐसा समय होता है जब लाखों लोग एक सामान्य उद्देश्य के लिए एक साथ आते हैं, अपनी आस्था का प्रदर्शन करते हैं, और धार्मिक सौहार्द का एक अनूठा उदाहरण प्रस्तुत करते हैं।
हालांकि, इतनी बड़ी संख्या में लोगों के एक साथ यात्रा करने से ट्रैफिक जाम और सुरक्षा संबंधी चुनौतियाँ भी पैदा होती हैं, जिनके प्रबंधन के लिए प्रशासन को विशेष व्यवस्था करनी पड़ती है। कुल मिलाकर, कांवर यात्रा भारतीय संस्कृति और आध्यात्मिकता का एक अभिन्न और महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो हर साल लाखों शिव भक्तों की अटूट आस्था और समर्पण का प्रतीक बनती है।