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गाजीपुर

धार्मिक परंपराओं के साथ सामाजिक जुड़ाव का प्रतीक है मकर संक्रांति

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बहरियाबाद (गाजीपुर) जयदेश। मकर संक्रांति का पर्व देशभर में धूमधाम से मनाया जाता है। इस त्योहार का विशेष संबंध भगवान सूर्य से है। ज्योतिषीय मान्यताओं के अनुसार, इस दिन सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करता है और उत्तरायण होता है। मकर संक्रांति को विभिन्न राज्यों में अलग-अलग नामों और परंपराओं के साथ मनाया जाता है। केरल, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में इसे ‘संक्रांति’, तमिलनाडु में ‘पोंगल’, हरियाणा और पंजाब में ‘लोहड़ी’, तथा असम में ‘बीहू’ के नाम से जाना जाता है।

खिचड़ी पर्व का ऐतिहासिक महत्व
मकर संक्रांति के दिन खिचड़ी खाने की परंपरा का गहरा ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व है। मान्यता है कि खिलजी के आक्रमण के समय बाबा गोरखनाथ के योगियों को भोजन पकाने में कठिनाई होती थी। तब बाबा गोरखनाथ ने चावल, दाल और सब्जियों को मिलाकर खिचड़ी बनाने की सलाह दी, जिससे योगी स्वस्थ और ऊर्जा से भरपूर रह सकें।

खिचड़ी और आयुर्वेद का विशेष संबंध
आयुर्वेद में खिचड़ी को सुपाच्य और स्वास्थ्यवर्धक भोजन माना गया है। मकर संक्रांति पर बनने वाली खिचड़ी में चावल, काली उड़द की दाल, हल्दी, नमक और हरी सब्जियां डाली जाती हैं। ये सामग्री आयुर्वेद के अनुसार ग्रहों से जुड़ी होती हैं।

चावल: चंद्रमा का प्रतीक

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काली उड़द की दाल: शनि का प्रतीक

हल्दी: बृहस्पति का प्रतीक

नमक: शुक्र का प्रतीक

हरी सब्जियां: बुद्ध का प्रतीक

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मकर संक्रांति के दिन खिचड़ी के साथ दही, पापड़, घी और अचार का सेवन करने की परंपरा भी है।

स्वास्थ्य के लिए लाभकारी
मकर संक्रांति पर नए अन्न से बनी खिचड़ी का सेवन शरीर को निरोग और ऊर्जा से भरपूर रखता है। इस पर्व का वैज्ञानिक पहलू यह है कि सर्दियों में खिचड़ी जैसे पौष्टिक भोजन से शरीर को गर्मी और पोषण मिलता है। इस पर्व की महिमा सिर्फ धार्मिक ही नहीं, बल्कि सामाजिक और स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है।

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