धर्म-कर्म
धनत्रयोदशी 10 नवम्बर को पूजन शुभमुहूर्त 11 नवम्बर को व्रत

रिपोर्ट – प्रदीप कुमार
हिंदू पञ्चाङ्ग के अनुसार प्रत्येक वर्ष धनतेरस महा-पर्व कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को मनाया जाता है।
वस्तुतः इस वर्ष 10 नवंबर शुक्रवार को धनत्रयोदशी ,11 नवम्बर शनिवार को व्रत मनाया जाएगा।
इस दिन कुछ नया खरीदने की परंपरा है।
विशेषकर पीतल व चांदी के बर्तन खरीदने का रिवाज़ है।
मान्यता है कि इस दिन जो कुछ भी खरीदा जाता है उसमें लाभ होता है।
धन संपदा में वृद्धि होती है।
इसलिये इस दिन लक्ष्मी की पूजा की जाती है।
धन्वंतरि भी इसी दिन अवतरित हुए थे इसी कारण इसे धन तेरस कहा जाता है। देवताओं व असुरों द्वारा संयुक्त रूप से किये गये समुद्र मंथन के दौरान प्राप्त हुए चौदह रत्नों में धन्वन्तरि व माता लक्ष्मी भी शामिल हैं।
यह तिथि धनत्रयोदशी के नाम से भी जानी जाती है।
धनतेरस तिथि – शुक्रवार 10 नवम्बर पूजन मुहूर्त सुबह 11:47 के बाद से दिन भर खरीदारी कर सकते हैं।
इस दिन लक्ष्मी के साथ धन्वन्तरि की पूजा की जाती है।
दीपावली भारत के प्रमुख त्योहारों में से एक है।
दीपोत्सव का आरंभ धनतेरस से होता है।जैन आगम (जैन साहित्य प्राचीनत) में धनतेरस को ‘धन्य तेरस’ या ‘ध्यान तेरस’ कहते हैं।
मान्यता है, भगवान महावीर इस दिन तीसरे और चौथे ध्यान में जाने के लिये योग निरोध के लिये चले गये थे।
तीन दिन के ध्यान के बाद योग निरोध करते हुये दीपावली के दिन निर्वाण (मोक्ष) को प्राप्त हुये।
तभी से यह दिन जैन आगम में धन्य तेरस के नाम से प्रसिद्ध हुआ ।
धनतेरस पर क्यों खरीदे जाते हैं बर्तन
कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन समुंद्र मंथन से धन्वन्तरि प्रकट हुए। धन्वन्तरी जब प्रकट हुए थे तो उनके हाथो में अमृत से भरा कलश था।
भगवान धन्वन्तरी कलश लेकर प्रकट हुए थे ।
उक्त बातें आयुष्मान ज्योतिष परामर्श सेवा केन्द्र के संस्थापक साहित्याचार्य ज्योतिर्विद आचार्य चन्दन तिवारी ने बताया कि इस दिन बर्तन खरीदने की परंपरा है।
विशेषकर पीतल और चाँदी के बर्तन खरीदना चाहिए, क्योंकि पीतल महर्षि धन्वंतरी का धातु है।
इससे घर में आरोग्य, सौभाग्य और स्वास्थ्य लाभ होता है।
इस दिन स्वर्ण, रजत मुद्रायें इत्यादि भी खरीदी जाती है,।
धनतेरस के दिन झाड़ू अवश्य ही खरीदें।
धनतेरस के दिन धन के देवता कुबेर और यमदेव की पूजा अर्चना का विशेष महत्त्व है।
इस दिन को धन्वंतरि जयंती के नाम से भी जाना जाता है।
धनतेरस पर दक्षिण दिशा में दीप जलाने का महत्त्व
धनतेरस पर दक्षिण दिशा में दिया जलाया जाता है।
इसके पिछे की कहानी कुछ यूं है।
एक दिन दूत ने बातों ही बातों में यमराज से प्रश्न किया कि अकाल मृत्यु से बचने का कोई उपाय है? इस प्रश्न का उत्तर देते हुए यमदेव ने कहा कि जो प्राणी धनतेरस की शाम यम के नाम पर दक्षिण दिशा में दिया जलाकर रखता है। उसकी अकाल मृत्यु नहीं होती।
इस मान्यता के अनुसार धनतेरस की शाम लोग आँगन में यम देवता के नाम पर दक्षिण दिशा की ओर दीप जलाकर रखते हैं। फलस्वरूप उपासक और उसके परिवार को मृत्युदेव यमराज के कोप से सुरक्षा मिलती है।
विशेषरूप से यदि घर की लक्ष्मी इस दिन दीपदान करें तो पूरा परिवार स्वस्थ रहता है।
धनतेरस पूजा विधि
संध्याकाल में पूजा करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है।
पूजा के स्थान पर उत्तर दिशा की तरफ भगवान कुबेर और धन्वन्तरि की मूर्ति स्थापना कर उनकी पूजा करनी चाहिए।
इनके साथ ही माता लक्ष्मी और भगवान श्रीगणेश की पूजा का विधान है।
ऐसी मान्यता है कि भगवान कुबेर को सफेद मिठाई, जबकि धनवंतरि को पीली मिठाई का भोग लगाना चाहिए ।
क्योंकि धन्वन्तरि को पीली वस्तु अधिक प्रिय है।
पूजा में फूल, फल, चावल, रोली, चंदन, धूप व दीप का इस्तेमाल करना फलदायक होता है।
धनतेरस के अवसर पर यमदेव के नाम से एक दीपक निकालने की भी प्रथा है।
दीप जलाकर श्रद्धाभाव से यमराज को नमन करना चाहिए।