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वाराणसी

क्यों जलती है मणिकर्णिका घाट पर चिता ? कैसे पड़ा इस घाट का नाम ?

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मणिकर्णिका घाट के कुएं का रहस्य क्या है ?

रिपोर्ट – शुभम कुमार सिंह

भगवान शिव की नगरी काशी देश समेत विश्वभर में मशहूर है। यह नगरी कई रहस्यों की वजह से अधिक जानी जाती है। काशी में गंगा नदी के तट पर मणिकर्णिका घाट है। मणिकर्णिका नाम घाट के कुएं में गिरी बालियों (मणिकर्ण) से लिया गया है, जिसे भगवान शिव ने आशीर्वाद दिया था। इस घाट को महाश्मशान भी कहा जाता है। यह घाट बेहद प्रसिद्ध काशी के सबसे पुराने घाटों में एक माना जाता है।

मान्यता है कि, यहां अंतिम संस्कार करने से मृत इंसान की आत्मा को मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस घाट पर हमेशा चिता जलती रहती है और कभी नहीं बुझती। हर रोज यहां 300 से ज्यादा शवों को जलाया जाता है। ऐसा भी कहा जाता है कि जब भी यहां जिसका दाह संस्कार किया जाता है तो अग्निदाह से पहले उससे पूछा जाता है, क्या उसने भगवान शिव के कान का कुंडल देखा ? यहां भगवान शिव अपने औघढ़ स्वरूप में सदैव ही निवास करते हैं।

कैसे पड़ा मणिकर्णिका नाम ?

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हिंदू मान्यता के अनुसार, ऐसा माना जाता है कि जब देवी आदि शक्ति जिन्होंने देवी सती के रूप में अवतरण लिया था, अपने पिता के अपमान की वजह से वह अग्नि में कूद गईं थीं और उस समय भगवान शिव उनके जलते शरीर को हिमालय तक ले गए। उस समय भगवान विष्णु ने भगवान शिव की दुर्दशा को देखकर अपना सुदर्शन चक्र देवी आदि शक्ति के जलते हुए शरीर पर फेंका जिससे उनके शरीर के 51 टुकड़े हो गए। प्रत्येक स्थान जहां उनके शरीर के टुकड़े पृथ्वी पर गिरे उन्हें शक्तिपीठ घोषित किया गया था। उसी समय मणिकर्णिका घाट पर माता सती की कान की बालियां गिरीं, इसलिए इसे एक शक्ति पीठ के रूप में स्थापित किया गया और इसका नाम मणिकर्णिका रखा गया क्योंकि संस्कृत में मणिकर्ण का अर्थ है कान की बाली। उसी समय से यह स्थान विशेष महत्व रखता है।

काशी खंड के मुताबिक, मणिकर्णिका घाट पर जिसका अंतिम संस्कार होता है। उसे भगवान महादेव तारक मंत्र कान में देते हैं और मोक्ष प्रदान प्राप्ति होती है। मान्यता है कि बाबा विश्वनाथ और माता पार्वती अन्नपूर्णा के रूप में भक्तों का कल्याण करते हैं। दूसरी ओर शिव औघड़ रूप में मृत्यु को प्राप्त लोगों को कान में तारक मंत्र देकर मुक्ति का मार्ग देते हैं। मणिकर्णिका पर चिताओं की अग्नि इसी कारण हमेशा जलती रहती है।

वैश्याओं का नृत्य –

मणिकर्णिका घाट में चैत्र नवरात्री की अष्टमी के दिन वैश्याओं का विशेष नृत्य का कार्यक्रम होता है। कहते हैं कि ऐसा करने से उन्हें इस तरह के जीवन से मुक्ति मिलती है, साथ ही उन्हें इस बात का उम्मीद भी होता है कि अगले जन्म में वे वैश्या नहीं बनेंगी।

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चिता की राख से होली –

मणिकर्णिका घाट में फाल्गुन माह की एकादशी के दिन चिता की राख से होली खेली जाती है। कहते हैं, इस दिन शिव के रूप विश्वनाथन बाबा, अपनी पत्नी पार्वती जी का गौना कराकर अपने देश लोटे थे। इनकी डोली जब यहां से गुजरती है तो इस घाट के पास के सभी अघोरी बाबा लोग नाच गाने, रंगों से इनका स्वागत करते है।

मणिकर्णिका घाट के कुएं का रहस्य –

मणिकर्णिका घाट पर एक कुआं है, जिसे मणिकर्णिका कुंड के नाम से जाना जाता है। इसे भगवान विष्णु ने बनवाया था। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान शिव पार्वती के साथ विष्णु के सामने उनकी इच्छा पूरी करने के लिए एक बार वाराणसी आए थे। विष्णु ने दंपत्ति के स्नान के लिए गंगा तट पर एक कुआं खोदा। जब भगवान शिव स्नान कर रहे थे, तो उनके कान की बाली से एक मणि कुएं में गिर गयी, इसलिए इस स्थान के लिए मणिकर्णिका नाम चुना गया। इस घाट से संबंधित एक और बात प्रचलित है कि भगवान शिव के कान का मणि उस समय नीचे गिर गया, जब वह उग्र रूप में तांडव कर रहे थे और उसी से इस घाट का निर्माण हुआ।

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