वाराणसी
अमृतकाल में आपातकाल की चुनौतियाँ: पराड़कर भवन में चंद्रशेखर जी की पुण्यतिथि पर संगोष्ठी आयोजित

वाराणसी। पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय चंद्रशेखर जी की 18वीं पुण्यतिथि के अवसर पर पराड़कर भवन में “अमृतकाल में आपातकाल की चुनौतियां: धर्म, राजनीति और गांधी” विषयक एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इस अवसर पर देश के विभिन्न राजनीतिक और वैचारिक धारा से जुड़े वक्ताओं ने विचार रखे।
मुख्य वक्ता राज्यसभा सांसद प्रो. मनोज झा ने कहा कि इस देश के चरित्र को समझने के लिए प्रेमचंद की ‘ईदगाह’ पढ़नी चाहिए और इतिहास को महसूस करने के लिए गांधी को जानना होगा। उन्होंने कहा कि आज की सत्ता गांधी के धर्म की व्याख्या के विपरीत सावरकर के भारत की ओर अग्रसर है। यदि चंद्रशेखर आज जीवित होते, तो वे एक पत्र लिखकर प्रधानमंत्री मोदी से कहते कि सत्ता की राजनीति यदि लोक की राजनीति के विरुद्ध खड़ी होती है, तो वह न केवल इतिहास में काले अध्याय के रूप में दर्ज होती है, बल्कि मानवता पर भी प्रश्न खड़ा करती है।
पूर्व प्रेस परिषद सदस्य एवं आपातकाल के दौरान बंदी रहे वरिष्ठ पत्रकार जयशंकर गुप्त ने कहा कि अमृतकाल में जो छद्म आपातकाल जैसी स्थिति बन रही है, उसमें गांधी की धारा को पुनर्जीवित करना होगा। उन्होंने धर्म के नाम पर इतिहास की पुनर्व्याख्या की प्रवृत्ति पर चिंता जताते हुए कहा कि हसन खान मेवाती जैसे इतिहास के नायकों को भुला दिया जा रहा है। संविधानिक संस्थाओं द्वारा मूल्यों की उपेक्षा आज के दौर को वास्तविक आपातकाल जैसा बना रही है।
चंदौली के सांसद वीरेंद्र सिंह ने कहा कि संविधान की प्रस्तावना में निहित समाजवाद और धर्मनिरपेक्षता पर प्रश्न उठाकर गांधी के भारत को हिटलर के भारत में बदलने का प्रयास किया जा रहा है। ऐसे समय में चंद्रशेखर जी के अनुयायियों की उपस्थिति आशा का संचार करती है।
पूर्व विधान परिषद सदस्य अरविंद सिंह ने कहा कि यदि गांधी के आदर्शों को जीवित रखना है, तो आज राहुल गांधी के नेतृत्व में इंडिया गठबंधन के संघर्षों में भागीदारी आवश्यक है।
कार्यक्रम के आयोजक कुंवर सुरेश ने कहा कि विगत 18 वर्षों से चंद्रशेखर जी की पुण्यतिथि पर वैचारिक संगोष्ठी आयोजित कर गांधी के सपनों का भारत रचने का सतत प्रयास किया जा रहा है। यह परंपरा काशी की धरती से चंद्रशेखरवाद की एक सशक्त आवाज के रूप में सामने आई है।
पूर्व मंत्री सुरेंद्र पटेल ने कहा कि देश जो कुछ अमृतकाल के नाम पर भुगत रहा है, वह पीड़ा देने वाला है और हमें यह संकल्प लेना होगा कि इस कालखंड को समाप्त कर देश को नई दिशा दें।
पूर्व अध्यक्ष शिव कुमार ने भी अपने संबोधन में चंद्रशेखर, जॉर्ज फर्नांडिस और मधु लिमये जैसे संघर्षशील नेताओं से प्रेरणा लेकर गांधी के भारत की पुनः स्थापना का आह्वान किया।
गोष्ठी में अन्य वक्ताओं में विजय नारायण, रामधीरज, नंदलाल पटेल (कम्युनिस्ट पार्टी), हरदास यादव (पूर्व प्रमुख), अशोक पांडेय (भाजपा प्रवक्ता), प्रो. सदानंद शाही, राजेंद्र चौधरी, अनिल श्रीवास्तव (पूर्व अध्यक्ष), संजीव सिंह, शमीम मिल्की, लालता कनौजिया, इंद्रजीत शर्मा, रामधनी यादव, प्रज्ञा सिंह, आरती यादव समेत अनेक गणमान्य लोगों ने भाग लिया और विचार व्यक्त किए।
संगोष्ठी का विषय प्रस्ताव वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप श्रीवास्तव ने प्रस्तुत किया। कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रो. सुरेंद्र प्रताप ने की, संचालन डॉ. शम्मी कुमार सिंह ने किया तथा धन्यवाद ज्ञापन पूर्व अध्यक्ष डॉ. उमाशंकर यादव ने किया।