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वाराणसी

सरकारी व्यवस्था की धज्जियां उड़ा रहे चिकित्सक और दलाल

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कमीशन खोरी चरम पर, डॉक्टर के चेंबर में बैठकर टूटी-फूटी भाषा में दवा की पर्ची लिखते हैं बिचौलिए

वाराणसी। सरकारी अस्पतालों में मुफ्त इलाज और जांच की सुविधा देने वाली सरकार की योजनाओं पर कुछ भ्रष्ट चिकित्सक और दलाल पानी फेर रहे हैं। कमीशनखोरी का ऐसा जाल बिछाया गया है कि जरूरतमंद मरीजों को सरकारी सुविधाओं का लाभ नहीं मिल पा रहा। मरीजों को ऐसी दवाएं लिखी जा रही हैं, जिन्हें केवल चुनिंदा मेडिकल स्टोर से ही खरीदा जा सकता है, जहां से डॉक्टरों का कमीशन तय होता है।

दीनदयाल उपाध्याय राजकीय चिकित्सालय में दलालों की सक्रियता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि वरिष्ठ सर्जन डॉ. प्रेम प्रकाश के चेंबर में बिचौलिए खुद दवा की पर्चियां लिख रहे हैं। सोनभद्र निवासी रामचंद्र दुबे के मामले ने इस गोरखधंधे की पोल खोल दी। रामचंद्र दुबे जब अपनी रिपोर्ट दिखाने पहुंचे, तो डॉ. प्रेम प्रकाश ने खुद पर्ची लिखने के बजाय एक बिचौलिए को दवा लिखने को कहा। उस दलाल ने टूटी-फूटी भाषा में ऐसी दवा लिखी, जिसे आम मेडिकल स्टोर पढ़ ही नहीं पाए।

मरीज ने कई दुकानों पर दवा ढूंढी, लेकिन वह सिर्फ राहुल मेडिकल स्टोर पर ही उपलब्ध थी, जहां से बिचौलिए ने लेने को कहा था। मजबूरी में 1400 रुपये की दवा खरीदकर जब मरीज डॉक्टर के पास लौटा, तो डॉक्टर नदारद थे, लेकिन बिचौलिया वहीं बैठा मिला। जब उससे पूछा गया कि सरकारी अस्पताल में मुफ्त दवा होते हुए भी बाहर से दवा क्यों लिखी गई, तो वह जवाब नहीं दे सका।

सूत्रों के मुताबिक, डॉक्टर और मेडिकल स्टोर 50% तक का कमीशन फिक्स कर दवाएं लिखते हैं। इन दवाओं का कोई पक्का बिल नहीं दिया जाता, ताकि गड़बड़ी की शिकायत न हो सके। एक बड़े दवा व्यापारी के अनुसार, जिस दवा को डॉक्टर ने मरीज को लिखी थी, वह सरकार द्वारा 6 महीने पहले प्रतिबंधित की जा चुकी थी। फिर भी वह दवा सिर्फ उन्हीं मेडिकल स्टोरों पर उपलब्ध थी, जहां डॉक्टरों की सेटिंग थी।

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इस गोरखधंधे को रोकने की कोशिश पहले भी हुई थी। पूर्व मुख्य चिकित्सा अधीक्षक (सीएमएस) डॉ. दिग्विजय सिंह ने जब बिचौलियों और कमीशनखोरी के खिलाफ मुहिम चलाई, तो उनके तबादले की साजिश रची गई। नतीजा यह हुआ कि डॉ. दिग्विजय सिंह समेत पांच अन्य चिकित्सकों का तबादला कर दिया गया, लेकिन डॉ. प्रेम प्रकाश अब भी अपनी कुर्सी पर बने हुए हैं।

प्रदेश सरकार ने सरकारी अस्पतालों में एक रुपये की पर्ची पर 20,000 रुपये तक की मुफ्त जांच और दवाओं की सुविधा दी है। लेकिन कुछ भ्रष्ट डॉक्टर और दलाल इस व्यवस्था को ध्वस्त करने में जुटे हैं। जरूरतमंद मरीजों को मजबूर किया जा रहा है कि वे निजी मेडिकल स्टोरों से महंगी दवाएं खरीदें।

सवाल यह है कि क्या प्रशासन इन भ्रष्ट डॉक्टरों और दलालों पर कार्रवाई करेगा? या फिर मरीजों की मजबूरी पर यह दलाली का खेल यूं ही चलता रहेगा?

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