वाराणसी
वासंतिक नवरात्र की इस तिथि को काशी के महाश्मशान मणिकर्णिका घाट पर नगर वधुएं बाबा के चरणों में अर्पित करेंगी स्वरांजलि, 351 साल पुरानी है यह परंपरा

(रिपोर्ट – प्रदीप कुमार)
वाराणसी| मोक्ष नगरी काशी जहां स्वयं काशी विश्वनाथ मृत्यु के बाद तारण मंत्र देते हों उस काशी में मृत्यु भी उत्सव है। ऐसे में क्या मंदिर और क्या महाश्मशान। तभी तो काशी के महाश्मशान मणिकर्णिका घाट पर कभी स्वयं भूत भावन शंकर अपने गणों संग चिता भस्म की होली खेलते हैं तो कभी नगर वधुएं धधकती चिताओं के बीच नृत्य-संगीत पेश करती हैं। माना जाता है कि इसके लिए केवल काशी ही नहीं बल्कि देश के कोने-कोने से नगर वधुएं वाराणसी आती हैं। उन्हें वर्ष पर्यंत चैत्र शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि का बेसब्री से इंतजार रहता है। ये साढ़े तीन सौ साल पुरानी परंपरा है।
वासंतिक नवरात्र में महाश्मशान पर मनाया जाता है तीन दिवसीय उत्सव
बाबा महामशाननाथ महादेव मंदिर, मणिकर्णिका घाट के व्यवस्थापक गुलशन कपूर ने पत्रिका को बताया कि वासंतिक नवरात्र की पंचमी से सप्तमी तिथि तक बाबा महाश्मशाननाथ का वार्षिकोत्सव मनाया जाता है। इसके तहत पहले दिन यानी पंचमी तिथि को वैदिक रीति से रुद्राभिषेक होता है, ये आयोजन इस बार छह अप्रैल को होगा। अगले दिन भोग भंडारा होगा जिसमें पंचमतार का भोग लगाया जाएगा। ये आयोजन सात अप्रैल होगा जबकि तीसरे व अंतिम दिन यानी सपत्मी तिथि को तंत्र पूजन और शाम को नगर वधुएं धधकती चिताओं के बीच नृत्य-संगीत का कार्यक्रम पेश करेंगी।
बाबा महामशाननाथ महादेव मंदिर, मणिकर्णिका घाट के व्यवस्थापक गुलशन कपूर
जानें क्या है मान्यता
इस संबंध में मान्यता है कि वासंतिक नवरात्र की सप्तमी तिथि की महानिशा को महा शमशान पर नृत्य करने वाली नगरवधुएं महाश्मशान नाथ को नृत्य व संगीतांजलि पेश कर ये दुआ करती हैं कि उनका अगला जन्म सम्मानजनक हो। इस तरह के शापित जीवन से मुक्ति मिले।
धधकती चिताओं के बीच नगर वधुओं का नृत्य होता है अचंभित करने वाला
वासंतिक नवरात्र की सप्तमी तिथि की शाम बाबा महाश्मशान नाथ को समर्पित नगर वधुओं का नृत्य-संगीत देख हर कोई अचंभित हो जाता है। दरअसल नगर वधुएं पहले स्वरंजली प्रस्तुत करती हैं, फिर शुरू होता है धधकती चिताओं के बीच घुंघरुओं की झंकार का सिलसिला। ‘जिंदगी’ और ‘मौत’ का एक साथ एक ही मुक्ताकाशीय मंच पर प्रदर्शन हर किसी को अचंभित करने वाला होता है।
देश के कोने-कोने से आती हैं नगरवधुएं
यहां आने वाली कोई भी नगर वधु पैसा नहीं लेती बल्कि मन्नत का चढ़ावा अर्पित करके जाती है। कलकत्ता, बिहार, दिल्ली, मुंबई समेत भारत के कई स्थानों से नगरवधुएं यहां पहुंचती हैं।
351 साल पुरानी है यह परम्परा
बताया जाता है कि ये परंपरा करीब 354 साल पुरानी है। पुरनिये बताते हैं कि महा शमशान नाथ मे सजने वाली नगरवधुओं की इस महफिल का इतिहास राजा मानसिंह से जुड़ा है। शहंशाह अकबर के समय में राजा मान सिंह ने 16वीं शताब्दी में इस मंदिर का जीर्णोद्धार कराया था। उसके बाद वहां भजन-कीर्तन होना था। पर श्मशान होने की वजह से यहां कोई भी ख्यातिबद्ध कलाकर आने को राजी नहीं हुआ। ऐेसे में इसकी जानकारी नगर वधुओं को हुई तो उन्होंने महाराज तक अपनी फरियाद पहुंचाई और इस समारोह में शरीक होने और नृत्य संगीत पेश करने की इजाजत मांगी। काफी सोच विचार के बाद राजा मान सिंह ने उनका आमंत्रण स्वीकार कर लिया, तभी से नगर वधुओं के नृत्य की परम्परा शुरू हुई। शिव को समर्पित गणिकाओं की यह भाव पूर्ण नृत्यांजली मोक्ष की कामना से युक्त होती है।
जानिए कौन है राजा मान सिंह
मान्यता है कि राजा मान सिंह ने राजस्थान के कारीगरों से काशी का नवनिर्माण कराया है। इतिहासकार मानते हैं कि अकबर के इस सेनापति ने बनारस में एक हजार से ज्यादा मंदिर और घाट बनवाए।, मानसिंह के बनवाए घाटों में सबसे प्रसिद्द मानमंदिर घाट है इसे राजा मानसिंह ने बनवाया था। बाद में जयसिंह ने इसमें वेधशाला बनवाई। बनारस में अनुश्रुति है कि राजा मानसिंह ने एक दिन में एक हजार मंदिर बनवाने का निश्चय किया ,फिर क्या था उनके सहयोगियों ने ढेर सारे पत्थर जुटाए और उन पर मंदिरों के नक़्शे खोद दिए। इस तरह राजा मानसिंह का प्रण पूरा हुआ।
राजा मान सिंह और काशी के रिश्ते की झलक आज भी दिखती है काशी में
राजा मानसिंह और बनारस के रिश्ते की झलक आज भी पूरी काशी नगरी में दिखती है। मानसिंह के वक्त की सबसे प्रसिद्द घटना विश्वनाथ मंदिर की पुनः रचना की है। अकबर ने पुनर्निर्माण का काम मानसिंह को सौंपा था। लेकिन जब मानसिंह ने विश्वनाथ मंदिर का निर्माण करवाना शुरू किया तो तो हिंदुओं ने उनका विरोध करना शुरू कर दिया। बताया जाता है कि हुसैन शाह शर्की (1447-1458) और सिकंदर लोधी (1489-1517) के शासन काल के दौरान एक बार फिर इस मंदिर को नष्ट कर दिया गया था। हिंदू रूढ़िवादियों का कहना था कि मानसिंह ने अपनी बहन जोधाबाई का विवाह मुग़ल परिवार में किया है ऐेस में वो इस मंदिर का निर्माण नहीं करवा सकते। लेकिन मानसिंह ने यह सुना तो निर्माण कार्य रुकवा दिया। हालांकि बाद में मानसिंह के साथी राजा टोडर मल ने अकबर के स्तर से की गई वित्त सहायता से एक बार फिर इस मंदिर का निर्माण करवाया।