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वाराणसी

काशी में जन्मीं थी रानी लक्ष्मीबाई, वीरता की गाथा गा रही जन्मस्थली की दीवारें

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गंगा घाट पर सीखी शस्त्र विद्या

वाराणसी। “खूब लड़ी मर्दानी, वो तो झांसी वाली रानी थी।”
यह पंक्तियां सुनते ही झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की बहादुरी का चित्र मन में उभरता है। आज 19 नवंबर, 1835 को जन्मी इस वीरांगना का जन्म वाराणसी के भदैनी क्षेत्र में हुआ था। उनकी जन्मस्थली आज भी उनकी वीरता की गाथा सुनाती है।

गंगा घाट पर सीखी शस्त्र विद्या

लक्ष्मीबाई, जिन्हें बचपन में मणिकर्णिका या मनु के नाम से जाना जाता था। उन्होंने अपने पिता मोरोपंत तांबे के साथ बचपन से ही शस्त्र विद्या और घुड़सवारी का अभ्यास किया। वे गंगा के उस पार रेती पर तलवारबाजी और घुड़सवारी करती थीं। जानकारों के अनुसार, यह युद्धकला उनके जीवन की बुनियाद बनी।

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बाल्यकाल में छबीली नाम से जानी गईं

भदैनी में जन्मी मनु की मां भागीरथी बाई का देहांत उनके मात्र चार वर्ष की उम्र में हो गया। पिता मोरोपंत उन्हें पेशवा बाजीराव द्वितीय के दरबार ले गए। वहां उन्होंने पेशवा के बच्चों के साथ तीरंदाजी, तलवारबाजी और निशानेबाजी सीखी। अपनी चंचलता के कारण उन्हें ‘छबीली’ कहकर पुकारा जाता था।

गंगा स्नान और विश्वनाथ पूजा

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कहा जाता है कि मनु प्रतिदिन गंगा स्नान के बाद बाबा विश्वनाथ का पूजन करती थीं। उन्होंने भगवद्गीता और महाभारत के अध्याय पढ़कर देशभक्ति और स्वतंत्रता की भावना को अपने अंदर आत्मसात किया। यही शिक्षा उनके संघर्षमय जीवन में प्रेरणा बनी।

जन्मस्थली की दीवारें गा रहीं गाथा

भदैनी स्थित रानी लक्ष्मीबाई की जन्मस्थली को अब ऐतिहासिक स्थल के रूप में संरक्षित किया गया है। यहां की दीवारों पर लो रिलीफ और हाई रिलीफ कला में उनके जीवन के प्रमुख प्रसंगों को उकेरा गया है। बाल्यकाल, प्रशिक्षण, घुड़सवारी और अंग्रेजों के साथ युद्ध जैसे क्षणों को जीवंत रूप दिया।

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