चन्दौली
हर मुसलमान का फर्ज आतंकियों को सिखाए सबकः मौलाना मेंहदी

अजाखाना-ए-रज़ा पर आखिरी दिन मुल्क की सलामती व खुशहाली के लिए की गई दुआ
चंदौली। इमाम हुसैन और करबला के शहीदों का संदेश सिर्फ आंसुओं तक सीमित नहीं रहना चाहिए। मुहर्रम आतंक के खिलाफ उठ खड़े होने का नाम है। आतंकवाद के खिलाफ जंग में हम सबको एक साथ मिलकर मुकाबला करना चाहिए।
उक्त बातें शनिवार को सैम हॉस्पिटल के संस्थापक स्व. डॉ. बबुआ द्वारा स्थापित अजाख़ाना-ए-रज़ा में आखिरी मजलिस में खिताब फरमाते हुए मौलाना मोहम्मद मेंहदी ने कही। उन्होंने कहा कि इमाम हुसैन की कुर्बानी ह़क और इस्लाम के लिए तो थी ही, साथ ही यजी़द के आतंक को रोकने के लिए भी थी। इसलिए हर मुसलमान का फर्ज है कि वे आतंकियों को सबक सिखाने का काम करे।
मौलाना ने रसूल के खुतबों के जरिए इमाम हुसैन की कुर्बानी की दास्तान पेश करने के साथ ही सभी धर्मों में सामंजस्य की जमकर वकालत की। मुहर्रम की नवीं तारीख के मसायबी नौहे पढ़ते हुए मशहूर शायर वकार सुल्तानपुरी ने इमाम की बहन जैनब की कुर्बानी की दास्तान पेश की। उन्होंने करबला के मैदान में इमाम हुसैन के शहीद होने के बाद न सिर्फ रसूल के कुनबे को समेटने का काम किया बल्कि यजीद से जमकर लोहा लिया। मजलिस के आखिरी दिन देश की सलामती और सद्भाव के लिए दुआ भी मांगी गई।
अंजुमन अब्बासिया सिकंदरपुर ने अपने कलाम के जरिए इमाम हुसैन की शहादत की दास्तान बयान की। मजलिस के बाद सिकंदरपुर और नगर के तमाम अज़ादारों ने नौहाख्वानी और मातमजनी की। अजाखाना-ए-रज़ा के प्रबंधक डॉ. गज़न्फर इमाम ने मजलिस-ए-अशरा के सकुशल पूरे होने पर पुलिस व प्रशासन के प्रति आभार व्यक्त किया।
उन्होंने बताया कि बुधवार की सुबह अजाखाने के ताजिये व फूल को बिछिया स्थित करबला में दफ्न कर दिया जाएगा। इस दौरान अजाखाना-ए-रजा में इमाम चौक के चक्कर काटने वाले पैक का जुलूस भी पहुंचा, जिसे शरबत पिलाया गया। नगर के अखाड़ों ने भी अजाखाना-ए-रज़ा में इकट्ठे होकर इमाम हुसैन की कुर्बानी को याद किया और अपने करतबों के जरिए करबला का मंजर पेश किया।
इस मौके पर वसीम कादरी, सरवर भाई, बुद्धुलाल निगम, अजय, मोहम्मद इंसाफ, जैगम इमाम, अली इमाम, अरशद जाफरी, अकबर अली, इंसाफ, रहमत, समीर उर्फ मुन्ना आदि मौजूद रहे।