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गाजीपुर

शिव भक्ति से गूंजेंगे मंदिर, कांवड़ यात्रा में उमड़ेगा श्रद्धालुओं का सैलाब

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दुल्लहपुर (गाजीपुर)। आकाश मंडल में तेज गति से दौड़ता बादलों का समूह, आकाश से धरती पर झरती बारिश की बूंदें, आकाश के नीचे तपती धरती की शीतल छाती पर खेती-किसानी में जुटे किसान, सघन वृक्षों की डालियों पर पंछियों का कोलाहल, अधखिली कलियां और मुस्कुराते फूलों की मादक गंध बांटता हवा का झोंका, मधुर संगीत की रस मंजरी में गीतों का तराना छेड़ता भंवरों का समूह, ताल-तलैयों के तट पर कंठताल देते मेढ़कों का झुंड, बाग-बगीचों में नृत्य करता मयूर दल – ये सब के सब पवित्र हिंदी मास सावन के शुभ संकेत और चतुर चितेरे ही तो हैं।

इन सबके बीच वृक्षों की डालियों पर झूलों का पड़ना, झूलों से मस्ती में गूंजती कजरी गीत की मधुर स्वर लहरियां भला किसको मदमस्त नहीं कर देंगी? वाकई हमारे पारंपरिक गीतों का सदियों पुराना रिश्ता रहा है। अब तो रहन-सहन, खान-पान, वेश-भूषा, आचार-विचार के साथ-साथ गीतों की प्रस्तुति में भी काफी कुछ हद तक बदलाव दिखाई देने लगा है।

जो भी हो, भक्ति और आस्था की पवित्र कड़ी में सुमार सावन का महत्व भक्तों के सिर पर इस कदर हावी होता है कि भक्तों का हुजूम उमड़ कर सारी फिजा को भक्ति के रंग में रंग देता है। वैसे नव वर्ष का पांचवां महीना श्रावण, भक्ति और आस्था के बीच उमड़ते जनसैलाब का अद्भुत और अकल्पनीय दृश्य प्रस्तुत करता है, जो देखते ही बनता है।

वर्षा ऋतु में शिव भक्तों को शिव भक्ति का भरपूर आनंद सावन ही दिलाता है। श्रावण शब्द की उत्पत्ति ‘श्रुति’ शब्द से मानी जाती है, जिसका तात्पर्य वेद से भी है, और अर्थ श्रवण करना होता है। प्राचीन काल में इसे नित्य कर्म मानकर श्रवण किया जाता था। भगवान शिव की कथा श्रवण करना अत्यंत मंगलकारी होता है। भगवान शिव को समर्पित श्रावण मास बहुत ही कल्याणकारी और मनोवांछित फल प्रदान करने वाला है।

इस बार ग्यारह जुलाई से प्रारंभ होकर नौ अगस्त को समाप्त होने वाले श्रावण मास में कुल चार सोमवार शामिल हैं, जो विशेष रूप से भगवान शिव का ध्यान, पूजन-अर्चन करके भक्तगण अपनी मनोकामनाएं पूर्ण करने की कामना करते हैं।

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शिव भक्ति में सराबोर श्रावण मास का नजारा इस बार भी अद्भुत और अकल्पनीय रहेगा। सामयिक मौका भी यह कहने को बेताब रहेगा कि – “हमारे भोले बाबा को मना ले जिसका दिल चाहे।”

शिव भक्ति का गेरुआ चोला पहने, भक्तों के कंधे पर लचकती कांवड़ के आगे-पीछे पतित पावनी भगवती मां गंगा का पवित्र जल और ‘बोल बम’ के उद्घोष के साथ भक्तों का पथ संचलन, भक्ति वातावरण की मिसाल बन जाना भी अद्वितीय है।

पौराणिक कथाओं के अनुसार सावन मास का महत्व इसलिए और भी अधिक बढ़ जाता है क्योंकि श्रावण मास में ही समुद्र मंथन हुआ था, जिसमें से निकले हलाहल (विष) का पान भगवान शंकर ने सृष्टि को बचाने के लिए किया था। परंतु विष के प्रभाव के कारण ही उनका कंठ नीला हो गया और शिव का एक नाम नीलकंठ भी पड़ गया। भगवान शिव के कंठ में समाहित विष के प्रभाव को कम करने के उद्देश्य से देवी-देवताओं सहित प्रकृति ने भी जल से भगवान शिव का रुद्राभिषेक कर उनके विष को शांत करने का प्रयास किया था।

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