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मुम्बई

मिलिए ‘डीआर मेहता’ से जिन्होंने लाखों लोगों को दिए कृत्रिम पैर, 12 राज्यों में चला रहे मुहिम

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रिपोर्ट – धर्मेंद्र सिंह धर्मा, ब्यूरो चीफ मुंबई

मुंबई। कोई भी इंसान किसी भी कारणवश अपना पैर गंवा देता है तो उसका बस एक ही सपना होता है कि काश वह फिर से एक बार अपने पैरों पर चल सके। ऐसे लोगों के सपने को पूरा करने में पूरे जी जान से लगे हुए हैं तत्कालीन आईएएस और जैसलमेर के कलेक्टर डी. आर. मेहता। 1969 में भीषण सड़क हादसे में मेहता के पैर की हड्डियों के कई टुकड़े हो गए थे, लेकिन डॉक्टरों ने सर्जरी कर जैसे-तैसे उनका पैर बचा लिया। इसी इलाज के दौरान डॉक्टरों के कहे वाक्य उनकी जीवन की प्रेरणा बन गए। डॉक्टरों ने उनसे कहा कि आपके लिए तो सरकार हर मुमकिन प्रयास करेगी, लेकिन अनेक लोग हैं जिन्हें पैर गंवाने पड़े हैं, उन्हें अपने पैर कैसे मिल सकते हैं? यह बातें सुन मेहता ने ठान लिया कि पैर गंवा चुके लोगों को अपने पैरों पर खड़ा करना है।

डीआर मेहता ने 1975 में श्री भगवान महावीर विकलांग सहायता समिति की स्थापना की। यह पैर गंवा चुके जरूरतमंद व्यक्ति को कृत्रिम पैर, बैसाखी, व्हीलचेयर मुहैया कराती है।संस्था विदेश में भी कैंप का आयोजन करती है। अब तक संस्था ने 40 देशों में 40,673 लोगों को पैर बनाकर दिए हैं। भारत के इतने राज्यों में संस्था करती है मदद -जयपुर में शुरू हुई संस्था की शाखाएं अब जम्मू कश्मीर, हैदराबाद, मध्य प्रदेश, गुजरात, यूपी, बिहार, महाराष्ट्र, पंजाब दिल्ली हरियाणा कर्नाटक झारखंड के साथ-साथ केंद्र शासित प्रदेशों में भी है। अब तक संस्था ने 20.94 लाख लोगों को खुद के पैर पर खड़ा करने का कार्य किया है।

कृत्रिम पैर लगवाने के ऐसे पूरे होते हैं सपने –

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मुंबई शाखा के नारायण व्यास ने बताया कि जिनके पैर नहीं हैं, उन्हें आधार कार्ड और फोटो देना होता है, तो हम उन्हें बैसाखी या वॉकर देते हैं। यदि दोनों पैर गए हैं, तो दिव्यांग सर्टिफिकेट देकर वे व्हीलचेयर ले सकते हैं। अगर हाथ काम कर रहा है, तो ट्राइसाइकिल भी दी जाती है। इसके अलावा सुनने में अक्षम लोगों को हियरिंग मशीन दी जाती है। इसके लिए उन्हें ऑडियो रिपोर्ट साझा करना अनिवार्य है। मुंबई के कई बीएमसी, सरकारी और निजी अस्पतालों से डॉक्टर दिव्यांगजनों को यहां भेजते हैं। डॉक्टर के लेटर के अनुसार हम उन्हें कृत्रिम एड़ी, घुटना, पूरा पैर बनाकर देते हैं। शहरों, गांवों के अलावा आदिवासी पाडा, नक्सल प्रभावित क्षेत्र में भी हमारे कैंप लगते हैं। मुंबई में ही सालाना औसतन 5,000 से 600 कृत्रिम पैर, बैसाखी, व्हीलचेयर आदि वितरित करते हैं। संस्था को डोनेशन मिलते हैं।

नांदेड़ से मुंबई अपने कृत्रिम पैरों को बदलने के लिए आए मनोहर केंद्र (72 वर्षीय) ने बताया कि मुझे पैर में वाद की समस्या थी। गांव के डॉक्टर से इंजेक्शन लिया, लेकिन उसके बाद पैर ही खराब हो गया और पैर काटना पड़ा। उसके बाद संस्थान का नांदेड़ में कैंप लगा था। वहां मुझे मुफ्त में कृत्रिम पैर बना कर दिया गया। आज मैं अपने पैर पर खड़ा हूं, सारे काम करता हूं, मैं इस संस्था का आभारी रहूंगा।

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