गाजीपुर
कर्बला में ताजिया दफन, जंजीर जनी कर इमाम हुसैन को दी श्रद्धांजलि

गाजीपुर के बहरियाबाद क्षेत्र में आशूरा के मौके पर देर रात तक ताजिया दफन करने का सिलसिला जारी रहा। अलविदा या हुसैन की सदाओं और नम आंखों के साथ अजादारों ने ताजियों को कर्बला में सुपुर्द-ए-खाक किया। काजी जी का ताजिया, उत्तर मोहल्ला के शमीमुलवरा का ताजिया, दक्षिण मोहल्ला के मुंतज़िर हुसैन वकील और बादशाह का ताजिया, देईपुर के हाजी फरीद का ताजिया, मलिकनगांव के महफूज आलम का ताजिया, रुकनपुर दरगाह के अतहर जमाल का ताजिया समेत क्षेत्र के तमाम गांवों के ताजिये मातम के माहौल में कर्बला पहुंचे।
इस दौरान डॉक्टर निसार अहमद, अब्दुल वाजिद अंसारी, ग्राम प्रधान प्रतिनिधि अब्दुल खालिक उर्फ गुड्डू, काजी, हेसामुद्दीन, सलीम नेता, कमर अंसारी, मुंतज़िर इमाम, बादशाह, जाबिर कुरैशी सैफ, माहे आलम, शमीमुलवरा, दानिशवरा, फैजवरा, अब्दुल्ला वरा, शादाब वरा, मुन्नू इमाम, सैयद सदर इमाम, हैदर इमाम, अनीश वरा, हाशिम वरा, अबरार अंसारी, सलीम अंसारी, खैरुल बशर, अख्तर अंसारी, असगर अंसारी, समीउल्लाह, इम्तियाज, हाजी फरीद अंसारी, नईम अंसारी, फैयाज अंसारी, ईशा अंसारी समेत समस्त गांव के नौजवान शामिल हुए।
ताजिया दफन से पहले उन्हें बड़े जुलूस में उठाया गया, जो कस्बे की गलियों से होता हुआ कर्बला तक पहुंचा। रास्ते भर शिया मुस्लिम समुदाय के लोग काले कपड़ों में सीनाजनी और मातम करते रहे। नोहा और मर्सिया पढ़ते हुए इमाम हुसैन और उनके परिवार के दुख को याद किया गया। कई अजादारों ने अपने जिस्मों को जंजीरों से लहूलुहान कर इमाम हुसैन की शहादत को श्रद्धांजलि दी।
कर्बला में ताजियों को दफनाना केवल रस्म नहीं, बल्कि इमाम हुसैन के अदम्य साहस, सच्चाई और ज़ुल्म के खिलाफ खड़े होने के संदेश को जीवित रखने का प्रतीक है। यह परंपरा समाज में इंसानियत, इंसाफ और भाईचारे की भावना को मजबूत बनाती है।