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‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ को मोदी कैबिनेट की मंजूरी
राम नाथ कोविंद समिति की सिफारिशें मंजूर
नई दिल्ली। देश में लोकसभा, विधानसभा, शहरी निकाय और पंचायत चुनावों को एक साथ कराने का मार्ग अब प्रशस्त हो गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट बैठक में ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ बिल को मंजूरी दे दी गई। सरकार अगले हफ्ते इस बिल को संसद में पेश कर सकती है।
राम नाथ कोविंद समिति की सिफारिशें मंजूर
बिल को पेश करने से पहले कैबिनेट ने पूर्व राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद की अध्यक्षता में गठित समिति की रिपोर्ट को स्वीकृति दी है। इस रिपोर्ट में सभी चुनावों को एक साथ कराने की संभावनाओं और उनके प्रभावों पर विस्तृत चर्चा की गई थी।
सरकार ने संकेत दिए हैं कि इस बिल पर संसद में आम सहमति बनाने की कोशिश की जाएगी। एएनआई की रिपोर्ट के अनुसार, इस पर व्यापक चर्चा के लिए इसे संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) के पास भेजा जा सकता है। बिल का उद्देश्य आगामी 100 दिनों के भीतर शहरी निकाय और पंचायत चुनावों के साथ लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराना है।
एक राष्ट्र, एक चुनाव के संभावित लाभ –
सरकार का मानना है कि इस व्यवस्था से न केवल धन और समय की बचत होगी, बल्कि प्रशासनिक कार्यों में भी सुधार आएगा।
धन और समय की बचत: बार-बार चुनाव कराने में लगने वाले खर्च और समय को कम किया जा सकेगा।
प्रशासनिक सुधार: सुरक्षा बलों पर बोझ कम होगा और चुनाव प्रक्रिया सुचारू रूप से संचालित होगी।
विकास कार्यों को गति: चुनाव प्रचार के बीच विकास कार्यों पर जो असर पड़ता है, उसे कम किया जा सकेगा।
सरकारी कार्यों में रुकावट कम होगी: चुनावी ड्यूटी के चलते सरकारी कार्यों में आने वाली बाधाएं दूर होंगी।
चुनौतियां भी कम नहीं
हालांकि, विशेषज्ञ इस प्रणाली को लागू करने की व्यवहारिकता और संभावित कानूनी अड़चनों पर भी सवाल उठा रहे हैं। राज्यों और केंद्र के बीच तालमेल और संवैधानिक संशोधन इस दिशा में मुख्य बाधा हो सकते हैं।
क्या कहते हैं जानकार ?
सियासी जानकारों का मानना है कि यदि ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ बिल लागू होता है, तो देश की चुनावी प्रक्रिया में यह सबसे बड़ा बदलाव होगा। हालांकि, इसे लागू करने के लिए सभी राजनीतिक दलों के बीच व्यापक सहमति आवश्यक है।
सभी की नजरें अब संसद सत्र पर टिकी हैं, जहां यह देखा जाएगा कि यह ऐतिहासिक बिल किन-किन बदलावों और चर्चाओं के बाद कानून का रूप लेता है।