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वाराणसी

BHU : अस्पताल के पीआईसीयू में बिजली गायब, वेंटिलेटर पर रहे नवजात, अटकी रही मां-बाप की सांसें

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9 महीने की बच्ची को लेकर भर्ती असिस्टेंट प्रोफेसर रो पड़ीं

वाराणसी। बीएचयू अस्पताल के बाल रोग विभाग में स्थित पीडियाट्रिक आईसीयू (PICU) में मंगलवार रात बड़ी लापरवाही सामने आयी जब अचानक बिजली सप्लाई बंद हो गई। इस दौरान वार्ड में भर्ती 10 से ज्यादा नवजात बच्चे वेंटिलेटर पर थे। तकरीबन दस मिनट तक अंधेरे में डूबे इस ICU में न तो कोई पावर बैकअप सक्रिय था और न ही तत्काल कोई वैकल्पिक व्यवस्था की गई।

बिजली कटते ही बच्चों के परिजन घबराकर मोबाइल की फ्लैश लाइट से अपने बच्चों को देखने लगे। मॉनिटर कुछ समय तक बैकअप पर चलते रहे, लेकिन अधिकांश जीवनरक्षक उपकरण बंद हो गए, जिससे बच्चों की जान खतरे में पड़ गई। परिजनों ने अस्पताल प्रशासन पर लापरवाही का आरोप लगाते हुए कार्रवाई की मांग की है।

9 महीने की बच्ची को लेकर भर्ती असिस्टेंट प्रोफेसर रो पड़ीं

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बाल रोग विभाग के PICU में जिस वक़्त बिजली गुल हुई, वहां बीएचयू के जियोलॉजी विभाग की असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. कोमल अपनी 9 माह की बच्ची को देखकर रो पड़ीं। बच्ची पिछले दस दिन से वेंटीलेटर पर जिंदगी की जंग लड़ रही है। उन्होंने बताया कि, यहां कोई बैकअप नहीं है। ऐसे में बच्चों के इलाज का संकट गहरा गया है। उन्होंने बाल रोग विभागाध्यक्ष प्रो. अंकुर सिंह पर वार्ड में निरीक्षण के दौरान दुर्व्यवहार करने का आरोप लगाते हुए कहा कि, जब बीएचयू के शिक्षक के साथ ऐसा हो रहा है तो आम लोगों के साथ कैसा व्यवहार होता होगा।

घटना का एक वीडियो परिजनों ने बनाया और उसे सोशल मीडिया पर साझा कर दिया, जिससे अस्पताल प्रशासन की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं। बताया जा रहा है कि घटना के समय डॉक्टर और पैरामेडिकल स्टाफ ने स्थिति संभालने की भरपूर कोशिश की, लेकिन बिजली की अनुपस्थिति के कारण पूरे ICU में तनाव और अफरा-तफरी का माहौल बना रहा।

इस मामले में विभागाध्यक्ष डॉ. अंकुर सिंह ने सफाई देते हुए कहा कि सामान्य स्थिति में PICU में बिजली जाने पर पावर बैकअप तुरंत चालू हो जाता है। जनरेटर के माध्यम से बिजली आपूर्ति बहाल की जाती है और सभी उपकरण चालू रहते हैं। उन्होंने दावा किया कि सभी बच्चों की सेहत की विशेष निगरानी की जा रही है और घबराने की कोई जरूरत नहीं है।

हालांकि परिजनों की मांग है कि घटना की निष्पक्ष जांच हो और जिम्मेदार अधिकारियों पर सख्त कार्रवाई की जाए, ताकि भविष्य में इस तरह की गंभीर लापरवाही दोबारा न हो।

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