गाजीपुर
मुख्यमंत्री के कार्यक्रम में सिर्फ चुने हुए पत्रकार! बाकी क्यों बाहर ?

गाजीपुर में मीडिया की अवहेलना या लोकतंत्र की आवाज़ को दबाने की कोशिश ? सीएम दौरे पर उठे सवाल
गाजीपुर में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के आगमन से पहले और बाद में सबसे बड़ा मुद्दा बनकर उभरा मीडिया की अनदेखी। यह सवाल केवल आमंत्रण या पास वितरण का नहीं, बल्कि लोकतंत्र की बुनियादी अवधारणाओं और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का है। इस पूरे घटनाक्रम ने पत्रकारिता की निष्पक्षता और प्रशासन की नीयत को लेकर गंभीर बहस छेड़ दी है।
सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार, मुख्यमंत्री के कार्यक्रम में केवल 15 पत्रकारों को ही पास जारी किए गए, जबकि जिले भर के सैकड़ों पत्रकारों को कार्यक्रम स्थल से बाहर ही रोक दिया गया। इनमें से कई ऐसे पत्रकार थे, जो वर्षों से ज़मीनी स्तर पर पत्रकारिता कर रहे हैं। यह चयन किस आधार पर किया गया, इसकी कोई स्पष्ट जानकारी प्रशासन द्वारा सार्वजनिक नहीं की गई।
चौंकाने वाली बात यह रही कि जिन पत्रकारों को पास दिए गए थे, उनके पास कथित रूप से एक्सपायर्ड अथॉरिटी लेटर थे। बावजूद इसके, उन्हें कार्यक्रम में शामिल होने की अनुमति मिली, जबकि प्रमाणिक पहचान वाले कई पत्रकारों को गेट पर ही रोक दिया गया। प्रशासन की ओर से इस पर कोई आधिकारिक बयान भी नहीं दिया गया, जिससे संदेह और बढ़ गया है।
जिले भर के पत्रकार अब यह सवाल उठा रहे हैं कि क्या अब पत्रकारिता भी चयन और अनुमति पर आधारित होगी? स्वतंत्र पत्रकारों को दरकिनार कर केवल चाटुकारिता पर आधारित सूची तैयार की जाएगी? गाजीपुर जैसे जिले में जहां स्थानीय मीडिया ही जनता की आवाज बनता है, वहां इस तरह की अनदेखी सिर्फ मीडिया का अपमान नहीं बल्कि लोकतंत्र की आत्मा पर सीधा प्रहार है।
यह भी आशंका व्यक्त की जा रही है कि प्रशासनिक अधिकारियों ने जानबूझकर उन पत्रकारों को कार्यक्रम से दूर रखा जो तीखे सवाल पूछ सकते थे या जिले की जमीनी सच्चाई मुख्यमंत्री तक पहुंचा सकते थे। इस प्रकार की कार्यशैली से यह संदेश जाता है कि सरकार केवल अपनी सुविधा के अनुसार सूचना देना चाहती है और असहज प्रश्नों से बचने के लिए मीडिया को नियंत्रित किया जा रहा है।
गाजीपुर में यह कोई पहली घटना नहीं है। पूर्व में भी स्थानीय पत्रकारों को सरकारी आयोजनों से दूर रखने की घटनाएं सामने आती रही हैं, खासकर सोशल मीडिया, डिजिटल प्लेटफॉर्म और छोटे अखबारों से जुड़े पत्रकारों को ‘अप्रासंगिक’ समझकर नजरअंदाज किया जाता है।
इस पूरे मामले से यह स्पष्ट होता है कि प्रशासन मीडिया की स्वतंत्रता को सीमित कर उसे एक नियंत्रित उपकरण में तब्दील करने की दिशा में बढ़ रहा है। सवाल उठता है कि क्या यह लोकतांत्रिक मूल्यों का हनन नहीं है? क्या इस प्रकार पत्रकारों को चुप कराने की कोशिश लोकतंत्र को कमजोर करने की साजिश नहीं मानी जाएगी?
अब ज़रूरत है कि जिला प्रशासन इस पूरे मामले पर सामने आए, स्पष्टीकरण दे और यह भरोसा दिलाए कि भविष्य में मीडिया को स्वतंत्रता और सम्मान के साथ कार्य करने दिया जाएगा। पत्रकारिता को “अनुमति” और “चयन” की सीमाओं में बांधना एक खतरनाक शुरुआत होगी, जिसके परिणाम पूरे लोकतंत्र के लिए घातक हो सकते हैं।
गाजीपुर की आवाज़ को दबाया नहीं जा सकता। यहां की पत्रकारिता कभी मूकदर्शक नहीं बनेगी। आज सवाल उठेंगे तो कल जवाब भी आएंगे। यही लोकतंत्र की असली ताकत है।