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गाजीपुर

“लोक वाद्य सिर्फ वाद्य नहीं, जनजीवन के भावनात्मक दस्तावेज हैं” : रुचिका अग्रहरि

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गाजीपुर। पी.जी. कॉलेज, गाजीपुर के संगोष्ठी कक्ष में अनुसंधान एवं विकास प्रकोष्ठ तथा विभागीय शोध समिति के संयुक्त तत्वावधान में संगीत विषय पर आधारित एक महत्वपूर्ण संगोष्ठी का आयोजन हुआ। इस अवसर पर संगीत विभाग की शोधार्थिनी रुचिका अग्रहरि ने “राजस्थान के पारंपरिक लोक वाद्य एवं लोकजीवन का अंत: संबंध” विषय पर अपना शोध प्रबंध प्रस्तुत किया।

रुचिका अग्रहरि ने शोध प्रस्तुति के दौरान कहा कि राजस्थान का सांस्कृतिक जीवन लोक वाद्य यंत्रों से गहराई से जुड़ा हुआ है। रावणहत्था, मंजीरा, खड़ताल, शंख, ढोलक, नगाड़ा, मोरचंग और कमायचा जैसे पारंपरिक वाद्य यंत्र केवल संगीत नहीं उत्पन्न करते, बल्कि समाज की आस्थाओं, भावनाओं और संघर्षों को अभिव्यक्त करने का माध्यम बनते हैं। धार्मिक अनुष्ठानों से लेकर लोक उत्सवों तक, हर आयोजन में इन वाद्यों की ध्वनि वातावरण को आध्यात्मिकता और ऊर्जा से भर देती है।

उन्होंने यह भी रेखांकित किया कि मांगणियार, लंगा, भील जैसी समुदायों की सांस्कृतिक पहचान इन्हीं वाद्य यंत्रों से जुड़ी हुई है। ये वाद्य न केवल रोजगार का माध्यम हैं, बल्कि लोककथाओं, देवगाथाओं और सामाजिक मूल्यों को पीढ़ी दर पीढ़ी स्थानांतरित करने का कार्य करते हैं। जब गांवों में लोक कलाकार इन वाद्य यंत्रों के साथ प्रस्तुति देते हैं, तो समुदाय की सीमाएं मिटती हैं और सामाजिक एकता को नया आधार मिलता है।

प्रस्तुति के बाद विभागीय शोध समिति, शोध छात्र एवं प्राध्यापकों द्वारा शोध से जुड़े विभिन्न बिंदुओं पर प्रश्न पूछे गए, जिनका शोधार्थिनी ने आत्मविश्वास और विद्वत्ता के साथ उत्तर दिया। समिति तथा महाविद्यालय के प्राचार्य प्रो. (डॉ.) राघवेन्द्र कुमार पाण्डेय ने शोध को विश्वविद्यालय में प्रस्तुत करने हेतु संस्तुति प्रदान की।

इस संगोष्ठी में अनुसंधान एवं विकास प्रकोष्ठ के संयोजक प्रो. (डॉ.) जी. सिंह, संगीत विभाग की विभागाध्यक्षा प्रो. (डॉ.) मीना सिंह, प्रो. (डॉ.) अरुण कुमार यादव, डॉ. रविशेखर सिंह, डॉ. रामदुलारे, डॉ. योगेश कुमार, डॉ. राकेश वर्मा, डॉ. सुशील कुमार सिंह, प्रो. (डॉ.) संजय चतुर्वेदी, डॉ. एस. एन. मिश्रा, प्रो. (डॉ.) विनय कुमार दुबे, डॉ. लवजी सिंह, डॉ. कमलेश, अमितेश सिंह, प्रदीप सिंह सहित अनेक प्राध्यापकगण एवं शोध छात्र-छात्राएं उपस्थित रहे। अंत में धन्यवाद ज्ञापन प्रो. (डॉ.) मीना सिंह ने किया, जबकि कार्यक्रम का संचालन प्रो. (डॉ.) जी. सिंह द्वारा किया गया।

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