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गाजीपुर

“आपातकाल में भूमिगत रहकर लोकतंत्र बहाली के लिए किया कार्य” : पारसनाथ राय

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गाजीपुर। देश के इतिहास का काला अध्याय है आपातकाल। आज ही के दिन तत्कालीन प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी द्वारा विपक्ष की आवाज को कुचल दिया गया, अभिव्यक्ति की आज़ादी को सेंसरशिप की ज़ंजीरों में जकड़ दिया गया, देशवासियों के सारे अधिकार छीन लिए गए और लोकतंत्र का गला घोंट दिया गया। सत्ता की मादकता में डूबी कांग्रेस वह कर गुज़री जिसे सोचकर सिहरन पैदा हो जाती है। 25 जून, 1975 को देश पर आपातकाल थोप दिया गया। देश के साथ जघन्य अपराध करने वाले जब लोकतंत्र बचाने की बात करते हैं, संविधान की दुहाई देते हैं, तो उन पर तरस आता है। ऐसा कहना है संघ के पुराने स्वयंसेवक पारसनाथ राय का।

पारसनाथ राय उन दिनों काशी हिंदू विश्वविद्यालय से संस्कृत में परास्नातक कर रहे थे। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से भी उनका जुड़ाव हो चुका था। बातचीत के क्रम में पारसनाथ राय बताते हैं कि संघ का स्पष्ट निर्देश था— “गिरफ्तार नहीं होना है और भूमिगत रहते हुए लोकतंत्र बहाली के लिए कार्य करना है।”

कांग्रेस के अध्यक्ष देवकांत बरुआ का कार्यक्रम आपातकाल लागू होने के बाद वाराणसी में तय हुआ। संघ से जुड़े हुए सभी स्वयंसेवक भूमिगत रहते हुए अपने मिशन में लग गए। अंततोगत्वा “इन्दिरा इज़ इंडिया, इंडिया इज़ इन्दिरा” का नारा लगाने वाली सोच बुरी तरह परास्त हुई। देश में आगे चलकर पुनः लोकतंत्र बहाल हुआ।

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