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गाजीपुर

वन माफिया बेलगाम, प्रशासन लाचार; हरे वृक्षों की कटाई जारी

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भांवरकोल (गाजीपुर)। “वृक्ष धरा भूषण, करता दूर प्रदूषण”—इस नारे को साकार करने के लिए सरकार ने वन विभाग जैसा महकमा स्थापित किया है, जिसमें हजारों कर्मचारी कार्यरत हैं और अच्छी-खासी तनख्वाह भी उठाते हैं। बावजूद इसके धरती को हरा-भरा रखने के सरकारी प्रयास लगातार वन माफियाओं के आगे विफल होते दिख रहे हैं।

प्रत्येक वर्ष 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस पर देश भर में पौधारोपण, गोष्ठियों और जागरूकता अभियानों का आयोजन होता है। वर्षा ऋतु में लाखों रुपये खर्च कर सार्वजनिक स्थलों पर पौधे लगाए जाते हैं। विभाग द्वारा इच्छुक लोगों को नि:शुल्क पौधे भी वितरित किए जाते हैं। इन पौधों की देखभाल हेतु गांव से लेकर जिला स्तर तक माली व अधिकारी तैनात किए जाते हैं।

लेकिन इन प्रयासों को मुंह चिढ़ा रहे हैं वन माफिया, जो खुलेआम हरे-भरे वृक्षों की कटाई कर रहे हैं। ताजा मामला स्थानीय विकास खंड के ग्राम पंचायत सजना का है, जहां राष्ट्रीय राजमार्ग-31 के निकट स्थित एक बगीचे से शीशम, आम, सफेदा, चिलबिल जैसे कई पेड़ काट लिए गए हैं। हैरत की बात यह है कि इस कटाई की सूचना वन विभाग को तक नहीं है।

स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ताओं का आरोप है कि सजना के अलावा सुखडेहरा, परसदा जैसे गांवों में भी इसी तरह हरे वृक्षों की अंधाधुंध कटाई की जा रही है, और वन विभाग की चुप्पी इस पूरे मामले में मिलीभगत की ओर इशारा करती है।

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जब संवाददाता ने इस संबंध में फॉरेस्ट रेंजर आदित्य कुमार और वन दरोगा अशोक भारती से जानकारी ली, तो उन्होंने अनभिज्ञता जताई और कहा कि जांच कर दोषियों पर वन अधिनियम के तहत कार्रवाई की जाएगी।

गौरतलब है कि हाल ही में फखनपुरा स्थित एक अवैध आरा मशीन पर भारी मात्रा में हरे वृक्षों की लकड़ी चीरे जाने का मामला भी सामने आया था, जिस पर रेंजर आदित्य कुमार द्वारा कार्रवाई की गई थी। कुछ समय के लिए अवैध कटाई रुकी रही, पर अब फिर से सक्रिय होने की सूचना मिल रही है।

अब बड़ा सवाल यह उठता है कि जब वन विभाग को मोटा वेतन दिया जा रहा है, तब भी वह अपने कर्तव्यों में नाकाम क्यों है? क्या वन माफियाओं की पकड़ इतनी मजबूत हो चुकी है कि विभाग भी कुछ नहीं कर पा रहा, या फिर कहीं अंदरुनी मिलीभगत तो इसका कारण नहीं?

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