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वाराणसी

मातृभाषा दिवस के अवसर पर विश्व भोजपुरी सम्मेलन का हुआ आयोजन

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रिपोर्ट – प्रदीप कुमार

भोजपुरिया बयार से गुलजार हुई काशी

25 करोड़ लोगों की आवाज को संवैधानिक दर्जा देने का विद्वानों ने किया आवाहन

वाराणसी।देश की आबादी के लगभग 25 फ़ीसदी लोग द्वारा बोली जाने वाली भाषा निसंदेह न सिर्फ उस समाज की विशालता का प्रकटीकरण है बल्कि उसकी स्वीकार्यता का पैमाना भी है। भोजपुरी आज भारत में किसी भी अन्य क्षेत्रीय भाषा की तुलना में सर्वाधिक लोकप्रिय भाषा है जिसका प्रभाव वैश्विक है। उक्त विचार विश्व भोजपुरी सम्मेलन के अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष अजीत कुमार दुबे ने व्यक्त किए। वह बड़ा लालपुर स्थित जीवनदीप शिक्षण संस्थान में अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के अवसर पर आयोजित विश्व भोजपुरी सम्मेलन में बतौर मुख्य अतिथि बोल रहे थे। इस अवसर पर भोजपुरी कि सामाजिक-सांस्कृतिक पृष्ठभूमि का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार के बड़े भूभाग में बोली जाने वाली भाषा दरअसल उस संस्कृति की पहचान है जिसमे खेती, किसानी और माटी की सुगंध शामिल है। भोजपुरी को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करना इस भाषा-भाषी के अस्तित्व का सम्मान करने के बराबर है। उन्होंने लोगों से आवाहन किया कि भोजपुरी को संवैधानिक दर्जा दिलाने को लेकर अपने जनप्रतिनिधियों को भी दबाव में लेना आज की आवश्यकता हैं।
विश्व भोजपुरी सम्मेलन के अंतरराष्ट्रीय महासचिव डॉ० अशोक कुमार सिंह ने कहा कि विगत कई वर्षों के प्रयासों से आज भोजपुरी भाषा का संवैधानिक होना लगभग सुनिश्चित है। आज भोजपुरी का अपना व्याकरण है जो इस बात का प्रमाण है कि व्याकरण सम्मतता किसी भाषा के विकसित होने का सबसे प्रमुख आयाम है। भोजपुरिया परिवेश का जिक्र करते हुए डॉ० अशोक सिंह ने कहा कि यह श्रम और संघर्ष की भाषा है जिसमें पसीना भी है और खून भी। ऐसे में इसका जनप्रिय होना स्वाभाविक है। आज भारत के बहुत से राज्यों में उनकी क्षेत्रीय भाषा को द्वितीय राजभाषा का दर्जा प्राप्त है लेकिन भोजपुरी क्षेत्र के 25 करोड़ से अधिक लोगों द्वारा बोली जाने वाली इस भाषा को राजभाषा का दर्जा ना मिल पाना निराशाजनक है। डॉ० सिंह ने सकारात्मक सोच के साथ आगे बढ़ने का आवाहन करते हुए कहा कि 2007 से चली आ रही इस मुहिम को जल्द ही अपनी मंजिल मिलेगी।

सासाराम से आए प्रो० गुरुचरण सिंह में प्राचीन साहित्य का उदाहरण देते हुए कहा कि कबीर, सूर, तुलसी जैसे भोजपुरी लोकभाषियों ने समाज को नई दिशा दिया जिसे हिंदी भाषा को आज भी स्वीकार हैं। उन्होंने बताया कि भोजपुरी पूर्व वैदिक काल से बोली जाने वाली भाषा है।

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विश्व भोजपुरी सम्मेलन में प्रांतीय अध्यक्ष चंद्रकांत जी ने कहा कि भोजपुरी साहित्य व्यापक तथा प्रभावी है। भोजपुरी साहित्य में राजनीतिक-सामाजिक चेतना मजदूरों व किसानों के कारण आई। भोजपुरी साहित्य में साहित्य व संस्कृति बची हुई है। प्रादेशिक महासचिव ओम धीरज ने कहा कि भोजपुरी संवेदना व्यक्त करने का सशक्त माध्यम है। उन्होंने कहा कि भोजपुरी एक सांस्कृतिक भाषा है जिसमें एक तरफ श्रम बोलता है तो दूसरी तरफ संघर्ष। इस अवसर पर त्रैमासिक भोजपुरी “संझवाती” प्रधान संपादक डॉ० अशोक कुमार सिंह, विजय किशोर पांडे की पुस्तक व्याज्ञानिक वैदिक सभ्यता एवं राम बहादुर राय द्वारा रचित भोजपुरी के मान्यता देई ए सरकार व अब गांवुओ में शहर आ गईल का विमोचन हुआ। सम्मेलन में भोजपुरी के विकास व संवर्धन में योगदान देने वाले विशिष्ठ व्यक्तियों को अंगवस्त्रम व स्मृति चिह्न देकर सम्मानित किया गया। इस अवसर पर आचार्य जनार्दन पांडेय, डॉ० अजय ओझा, लाखन सिंह, प्रदेश प्रवक्ता महिला मोर्चा बिहार भाजपा पूनम सिंह, कवि कुमार अजय, उमा शंकर साहू, एस. आनंद, डॉ० अंशु सिंह, अल्केश कुमार सिंह, पूनम शर्मा स्नेहिल, भोजपुरी गायिका पम्मी शांडिल्य सहित सैंकड़ों लोग उपस्थित रहे।

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